आँख में अश्रु
रोक चुकी थी उर्मिला , अश्रु बहाती आँख
प्रिय वियोग यद्यपि घना , बिखरे स्वप्निल पाँख ।।1
बहती आँखों ने रचा,सीता का इतिहास ।
राम भरे आँसू नयन ,हृदय धरे थे आस ।।2
रोई राधा आँख भर , वृंदावन में झूम ।
आगे निकली कृष्ण से ,कालिंदी तट धूम ।।3
कबिरा रोकर रात भर ,जग में हुए प्रसिद्ध ।
दृष्टि खुली रखकर सदा ,रहे समय आविद्ध ।।4
अश्रु नयन छलके करें ,गोपनीय हिय बात ।
सजा रहा मानस सदा ,सुधियों की बारात ।।5
अश्रु-आँख का है बना ,नित्य घना संबंध ।
एक दूसरे संग रम ,पाते प्रेमिल गंध ।।6
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
स्वरचित रचना
वाराणसी
14/1/2022