आँखो की कोई जुबा नही होती/मंदीप
आँखो की कोई जुबा नही होती/मंदीप
आँखो की कोई जुबा नही होती,
अपनों से जुदा होकर ये ऐसे नही रोती।
दर्द बता देती अपना,
गिरा के लाखो के मोती।
जिस से चाहत है हो जाती,
उसके सजदे में ये हमेसा झुकती।
खोल देती दिल के भेद,
जब आँखे लाल होती।
जो दिल को बहा जाये,
ऐसे ही अखियाँ चार नही होती।
मंदीपसाई