आँखों मे छिपा इश्क़
अब मैं तुमसे, बात नहीं करूंगा ।
कहा ना ,मैं तुमको याद नहीं करूंगा ।
जलती हुई बाती को, और परेशान नहीं करूंगा।
बुझा दूंगा आग उसकी, रोनक से उसको नाराज नहीं करूंगा।
घुली हुई हवाओ में, उसकी खुशबू का ख्याल नहीं करूंगा।
दिल डूबा दिया है कर्ज में, ब्याज का हिसाब नहीं करूंगा।
उन आंखों के नशो का ,दीदार नहीं करूंगा।
मयखाने में भी बैठ के, तुझे बदनाम नहीं करूंगा।
इश्क मेरा पक्का है तो, तू भी ना सोएगी।
और में भी सपनो में तेरा इंतजार, नही करूंगा ।
प्यार है और रहेगा पूरी उम्र, तुझसे ।
पर ये दिखा के में ,तुझे नख़रे दर नही करूँगा ।
बस यही तमना हैं ,मौत की निशा तक तू
सफर में हो ।
वहाँ से तेरा साथ छोड़ दूंगा ,दुनिया को तेरी हँसी से
गुमराह नही करूँगा।
हर्ष मालवीय
बीकॉम कंप्यूटर तृतीय वर्ष
शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल