आँखों में रही नींद कहाँ
आँखों में रही नींद कहाँ
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आँखों में रही नींद कहाँ
पहले जैसे दिन रात कहाँ
काटे से भी कटते नही
क्यों नहीं ये दिन रात यहाँ
आँखें भी पथराई हुई
रैन में भी अब चैन कहाँ
तनबदन भी भारी-भारी
भारीपन ले जाऊँ कहाँ
दिन रात ही खाऊँ पीऊँ
तौंद को मैं घटाऊँ कहाँ
रिश्ते नाते अब टूट गए
रिश्ते नाते निभाऊँ कहाँ
खेल खेलते भी हार गए
कौन सा खेल खेलूं कहाँ
निज घर हुए कारावासी
आजादी अब पाऊँ कहाँ
धनराशि काम नहीं आई
धन प्रयोग मैं करूँ कहाँ
तुम्हीं मेरा सर्वस्व ले लो
बाहरी दृश्य दिखा कहाँ
नीर हवा धूप दोपहरी
सुखविंद्र दृश्य दिखा यहाँ
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)