आँखों में बगावत है ghazal by Vinit Singh Shayar
सुनो! इक बात कहनी है मुझे तेरी ज़रूरत है
कहोगी क्या अगर कह दूँ मुझे तुमसे मोहब्बत है
तुम्हारे साथ बीते पल कभी जो याद आते हैं
ये आँखे भीग जाती है, नहीं अच्छी ये आदत है
टिकट बनवा लिया मैंने, शहर ये छोड़ जाना है
तुझे जी भर के मैं देखूँ मेरी आँखों की चाहत है
सुना है वो भी छुप छुप कर पढ़ती है मेरी ग़ज़लें
हमारे सामने फिर क्यों उन आँखों में बगावत है
ज़माना जानता है मैं हूँ अपने आप का क़ातिल
मोहल्ले में मेरे फिर क्यों बिठाई ये अदालत है
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar