आँखों में पट्टी बाँध लेती है
ज़हन बचपन का गोली मीठी-खट्टी बाँध लेती है
कि जैसे पौधे की जड़ गीली मिट्टी बाँध लेती है
महाभारत तभी छिड़ता है घर की दो दिवारों में
कि जब गांधारी भी आँखों में पट्टी बाँध लेती है
सिमट जाती है बाँहों में मेरी वो इस तरह आकर
कि जैसे डामरों में खुद को गिट्टी बाँध लेती है
हुनरमंदी में हरगिज़ कम नहीं बेटी मेरी ‘संजय’
वो भरकर सेतुआ आटे में लिट्टी बाँध लेती है