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8 Dec 2016 · 1 min read

आँखों में नूर आया मिरे लब पे हँसी आ गई..

आँखों में नूर आया मिरे लब पे हँसी आ गई
हम भूले हुये थे राहें और तेरी गली आ गई

उड़ाये जुल्फें मिरी कभी आँचल से खेले है
तुम्हें जो देखा इन हवाओं को दिल्लगी आ गई

मिलते ही आँखें पढ़ गए हाल-ए-दिल गहराई तक
गई बेरूख़ी उनकी लहजे में भी नमी आ गई

रंग तेरे पास आ बैठे लब ये गुनगुना बैठे
तस्वीरों को बोलना नगमों में नगमगी आ गई

मिली थी राहतें ज़माने के शोलों की गरमी से
लो फिर उसी बरसात के मौसम की तलबी आ गई

जब छा गई घटायें ज़मीं से आसमानों तक यहाँ
सजेगा फिर गुल-ए-गुलशन उम्मीद की कली आ गई

जब भी आँख उठाई है देखे हैं करिश्में ए खुदा
झुकी है आँख’सरु’ की तिरे क़दमों में जबी आ गई

1 Comment · 255 Views
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