आँखों में नमी लेकिन …
आँखों में नमी लेकिन
होठों पर हंसी रहती
अगर वो,
मेरी तक़दीर नहीं होती
जब मिलना ही था उनसे तो
बिछुड़न का दर्द बनाया क्यूँ
अब दर्द हमारे सीने में
तूने खुद को तड़पाया क्यूँ
इस विरहन की तन्हाई में
सदा गुमनाम वही रहती
काश वो,
मेरी तक़दीर नहीं होती
बेखबर रहें हर दिन खुद से
कभी रातों को सोते ना
जो अन्जान अगर होते
कभी आँखें भिगोते ना
इन नम आंखों में अब हरपल
कोई तस्वीर नहीं रहती
अगर वो,
मेरी तक़दीर नहीं होती
कभी मय्यत नहीं सजती
कभी आँखें नहीं सोती
इस ज़ालिम सी दुनिया में
जो तू रहगुजर होती
इन सुनसान सड़कों पर
हर आहट हंसी रहती
अगर वो,
मेरी तक़दीर नहीं होती