“आँखों आँखों में बात होने दो”
आँखों ने कहा कुछ आँखों से
आँखों आँखों में बात हुई
यूँ बोल उठी सुन साजना
अब तो ये आँखें चार हुई
आँखों में बसते बसते तुम
अब प्रीत गले का हार हुई
क्यों हाथ पकड़ते हो मेरा
अँखियों में शरम की धार हुई
पलकें झपक के बोल उठी
ये ऑंखें जीवन सार हुई
चंचल चितवन कजरारे नयन
ये ऑंखें तुमपे निसार हुई
है प्रेम विहल अँखियाँ मेरी
तेरी छवि इनका श्रृंगार हुई
आँखों ने कहा कुछ आँखों से
आँखों आँखों में बात हुई
अनन्या “श्री”