आँखे ने प्रीत की रीत निभाई थी
प्रीत की रीत निभाई थी इन आँखों ने।
आँखों ने कैद किया था सूरत उनकी प्रेम भरी सलाख़ों ने।।
नही मिलता किसी को यहाँ मुक्कमल जहाँ।
ऐसा मीत ढूँढा था हमने लाखों में।।।।।
लता पताये भी गिर कर सुख बिखर गयी फिर से
हरा भरा होना छोड़ दिया इश्क़ में जली साखों ने।।।।
इश्क़ में पड़ी दर्द की सीने पर दीवार
दर्द ही दर्द सहकर जिंदगी बना ली इन दरारों ने।।।
इन बहारों और फिजाओं ने भी फूल बरसाना छोड़ दिया।
चाँद को मनाने में रोशनी कम कर दी हजार तारो ने।
जोडा था स्नेह और प्यार से सारे रिश्तों को एक घेरे में।
अपनी सहभागिता निभाया था मेरे विश्वास के धागों ने।
रचनाकार
गायत्री सोनु जैन
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