आँखें
दोहें
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पथ को तुम कोसो नहीं, आँखे कर के लाल।
दायें बायें देख कर , चल तू अपनी चाल।
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आँखे झूठ न बोलती , जो देखे वह मान।
करो भरोसा आप पर, खुली रखो तुम कान।।
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आँखो की भाषा समझ, अपनो को पहचान।
अपने ही देंगे तुझे , खुद से बढकर मान।।
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पं. संजीव शुक्ल “सचिन”
?? मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार –८४५४५५