आँखें
क्यूँ बहुत उदास रहती है तेरी आँखें
दर्द खुद-ब-खुद बयां करती तेरी आँखें,
तु न समझ कि दुखों को छुपा लेगा
रह-रह कर जो बरस पड़ती तेरी आँखें,
तु मासूम , भोला , सीधा औ सच्चा है
पढ़ने वाले तो पढ़ लेते है तेरी आँखें,
दर्द उठे तो अबकी बार मोती न गिराना
पलके न भिगोना की खूबसूरत है तेरी आँखें,
दिल के सब राज़ हरगिज़ न छिप सकेंगे
मिलना हुआ गर बयां कर देंगी तेरी आँखें,
राज़ मोहब्बत के छिपा कर क्या पाओगे
मुझसे मिलोगे तो कबूल कर लेंगी तेरी आँखें,
सोचता हूँ अब उदासी के दिन दूर कर ही दूँ
यूं कब तक सहेगी भला ये पीर तेरी आँखें,
गहरायी देखना है तो आंखों के समंदर मे डुबो
जाने वाले को क़ैद कर लेती है तेरी आँखें,
आँखें खुशी, दर्द, गम, दुख सबमे बरस पड़ती
काश सीख जाए आंसू न गिराना तेरी आँखें,
आँखों में इतना है कि उम्र ढल जाए लिखते
सोचता हूँ अब खुद सीखें बोलना तेरी आँखें,
…………………….
निर्मल सिंह ‘नीर’
दिनांक – 21 जुलाई, 2017
समय – 07:00pm