“आँखें” सायलीछंद
“आँखें” सायली छंद
शिल्प-१, २, ३, २, १ शब्द
आँखें
हमेशा तुम्हारा
इंतज़ार करती रहीं
तुम नहीं
आए।
नयन
नीर बहा
समंदर हुआ खारा
पथिक प्यासा
लौटा।
दृग
कमल नयन
चपल चंचल चितवन
देख मुस्काते
रहे
लोचन
श्याम भ्रमर
रक्त अधर तकते
नहीं थकते
हैं
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”