आँखें खोलूं तो सारा ज़माना नज़र आता है,
आँखें खोलूं तो सारा ज़माना नज़र आता है,
सुबह का भूला हुआ शाम को घर आता है
तालीम सीखता हूं ज़िंदगी में कुछ करने की,
रोज़ चलकर मेरे पास एक बूढ़ा शजर आता है
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
आँखें खोलूं तो सारा ज़माना नज़र आता है,
सुबह का भूला हुआ शाम को घर आता है
तालीम सीखता हूं ज़िंदगी में कुछ करने की,
रोज़ चलकर मेरे पास एक बूढ़ा शजर आता है
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”