अ-परिभाषित जिंदगी…..!
“” कहीं मौज-मस्ती से भरी सफ़र…
कहीं अनजानी राहों की डगर…!
कभी कुछ न मिलने का ग़म…
कभी कुछ कम मिलने की हताश कहर..!
कभी कुछ पा लेने की बेचैनी…
कभी कुछ खो लेने का डर…!
कभी कोई अपनी अनुभव से…
जिंदगी को परिभाषित कर जाता है…!
कभी कोई अपनी तार्किक बातों से…
कुछ सीमाओं में बांध जाता है…!
बस इतना ही है…
जिंदगी का सफर…!
शायद यही है…
हम सब की धारणा…!
मगर कितना सही है ये पैमाना…
किसे है पता..?
इतना ही है जिंदगी का सफर…!! “”
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