अज़नबी
*** अज़नबी (ग़ज़ल) ***
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अज़नबी ख़ूब तुम छाये हो,
प्रेम संदेश तुम लाये हो।
तुम पराये यहाँ दिखते हो,
कौन से देश से आये हो।
भँवरे की तरह भरमाया,
देखकर क्यों हमें शरमाये हो।
लाल वो रंग दिखता रहता,
पान कुछ प्यार का खाये हो।
वो कहे यार मनसीरत से,
स्नेह का वो रंग बरसाये हो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)