Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Jul 2016 · 3 min read

अॉड – ईवन 2

“कौन आ गया सुबह सुबह”
द्वारकानाथ जी लाठी टेकते हुए दरवाजा खोलने गए और दरवाजा खुलते ही बच्चों की तरह खिलखिला उठे।
दरवाजे के दूसरी तरफ उनके कॉलेज टाइम के सहपाठी मिथिलेश प्रसाद खङे थे।दोनों गले मिले।
द्वारका जी ने आश्चर्य मिश्रित खुशी के साथ पूछा,
“मिथिला तुम इस शहर में मुझसे मिलने आए हो? पता किसने दिया? हम दोनों अपनी ढलती उम्र के चलते दो साल पहले यहाँ दिल्ली शिफ्ट हो गए बहू बेटे के साथ पर तुम्हारा नंबर खो जाने के कारण तुमको सूचना ही न दे पाया पर बहुत खुश हूँ तुमको देखकर ।कितनी सारी बातें बाकी हैं तुमसे करनी है।”
सवाल ,खुशी , उत्साह सब एक साथ बरस रहे थे।
” अरे मैं यहाँ अपने चचेरे भाई के बेटे के गृह प्रवेश में शामिल होने आया था तो कुछ दिन रोक लिया उन लोगों ने।
कल शाम तुम्हारा बेटा मुझे पार्क में मिला । उससे बात हुई तो पता चला कि वो भी पास की कॉलोनी में रहता है और तुम दोनों के यहां होने के बारे में भी उसी ने बताया।
तो मैं रुक नहीं पाया सुबह होते ही चला आया ।और देखो तुम्हारे घर आते आते चोट लगा बैठा ”
मिथिलेश जी ने कुछ कराहते हुए अपना पैंट घुटने तक चढ़ाकर दिखाया।
‘ओह ये चोट कैसे लगी ” अवाक द्वारका जी ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई
“इंदिरा देखो मिथिला आया है और पहले जरा फर्स्ट एड बॉक्स लेते आना बाद में चाय नाश्ता .. गहरी चोट लगी है ”
अरे कुछ नहीं , मैं सड़क पार कर रहा था और तभी गलत हाथ पर आते एक स्कूटी सवार ने टक्कर मार दी । वो तो मैं पहले ही संभलकर पीछे हट रहा था तो हल्का छुलकर पीछे गिर गया और वो भी गिर गया पर उठ कर चला गया । ये चोट लग गई वरना तो हड्डी टूट जाती।”
मिथिलेश जी ने बताया।
इंदिरा जी किट ले आईं ।मरहम पट्टी होने लगी। इंदिरा जी चाय नाश्ते के लिए चलीं गईं।
” बहुत कम उम्र थी स्कूटी वाले की । बारह तेरह बरस होगी। पता नहीं क्यों मां बाप इतने छोटे बच्चों को गाङी थमा देते हैं बच्चों की भी उम्र जोखिम में डालते हैं और बाकी राहगीरों की भी।”
मिथिलेश जी ने बात आगे बढ़ाई।
” सही कह रहे हो। कोई नियम कानून नहीं। कोई फिक्र नहीं। जाने किस अंधी दौङ में भागे जा रहे हैं सब।समझ नहीं आता।
इन मां बाप को तो सजा का प्रावधान होना चाहिए तभी कुछ सुधार संभव है।”
द्वारका जी ने गंभीर मुद्रा में बात रखी।
मिथिलेश जी ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा,
” छोङो ये बताओ बहू बेटे सब कहाँ हैं ”
“बहु बेटे दोनों नौकरी के लिए गए हैं शाम तक आएंगे और बेटा शुभ ट्यूशन पढ़ने गया है , आता ही होगा ,आज कल उसकी छुट्टियां चल रहीं है बस ट्यूशन जाता है ।”
द्वारका जी ने कहा।
तमाम बातें होती रहीं। बेल बजी। इंदिरा जी खोल़ने गईं दरवाजा । शुभ आया था पढ़कर।उसके माथे और हाथ पर चोट थी हल्की सी।
इंदिरा जी ने घबरा कर कहा ” ये सब क्या है सुब्बू?”
कुछ नहीं दादी ..ट्यूशन जाते समय एक बुढ्ढा आदमी गाङी से टकरा गया .. मेरा बैलेंस बिगङ गया और मैं गिर गया । जिससे चोट लग गई।”
शुभ ने दादी को कुछ रोष भरी आवाज में बताया ।

“कैसे कैसे बुढ्ढे होते हैं । सङक पर चलना आता नहीं निकल पङते हैं। अरे घर पर आराम क्यों नहीं करते ।कुछ हो जाता बच्चे को तो”
इंदिरा जी शुभ को लेकर जोर जोर से गुस्से में बङबङाते हुए अंदर घुसीं।
उधर
मिथलेश जी सब कुछ सुनकर दोहरी मानसिकता के फैर से हैरान।
अंदर घुसते हुए शुभ की नजर मिथिलेश जी पर पङी और वो चौंक कर नजरें बचाता अंदर घुसा चला जाता है।।। ”

अंकिता

Language: Hindi
5 Comments · 296 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
न्योता ठुकराने से पहले यदि थोड़ा ध्यान दिया होता।
न्योता ठुकराने से पहले यदि थोड़ा ध्यान दिया होता।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
गिरता है गुलमोहर ख्वाबों में
गिरता है गुलमोहर ख्वाबों में
शेखर सिंह
वो भी तो ऐसे ही है
वो भी तो ऐसे ही है
gurudeenverma198
चैन क्यों हो क़रार आने तक
चैन क्यों हो क़रार आने तक
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
--कहाँ खो गया ज़माना अब--
--कहाँ खो गया ज़माना अब--
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
स्वर्ग से सुंदर मेरा भारत
स्वर्ग से सुंदर मेरा भारत
Mukesh Kumar Sonkar
****तन्हाई मार गई****
****तन्हाई मार गई****
Kavita Chouhan
तलाशती रहती हैं
तलाशती रहती हैं
हिमांशु Kulshrestha
** मंजिलों की तरफ **
** मंजिलों की तरफ **
surenderpal vaidya
रद्दी के भाव बिक गयी मोहब्बत मेरी
रद्दी के भाव बिक गयी मोहब्बत मेरी
Abhishek prabal
विद्या-मन्दिर अब बाजार हो गया!
विद्या-मन्दिर अब बाजार हो गया!
Bodhisatva kastooriya
आजादी
आजादी
नूरफातिमा खातून नूरी
तारीफों में इतने मगरूर हो गए थे
तारीफों में इतने मगरूर हो गए थे
कवि दीपक बवेजा
जै जै अम्बे
जै जै अम्बे
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
💐प्रेम कौतुक-273💐
💐प्रेम कौतुक-273💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
रोशन है अगर जिंदगी सब पास होते हैं
रोशन है अगर जिंदगी सब पास होते हैं
VINOD CHAUHAN
आना भी तय होता है,जाना भी तय होता है
आना भी तय होता है,जाना भी तय होता है
Shweta Soni
दिल में भी
दिल में भी
Dr fauzia Naseem shad
"हूक"
Dr. Kishan tandon kranti
क्या जानते हो ----कुछ नही ❤️
क्या जानते हो ----कुछ नही ❤️
Rohit yadav
खोजें समस्याओं का समाधान
खोजें समस्याओं का समाधान
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
छोटे-मोटे कामों और
छोटे-मोटे कामों और
*Author प्रणय प्रभात*
जरूरत के हिसाब से ही
जरूरत के हिसाब से ही
Dr Manju Saini
इश्क़ में भी हैं बहुत, खा़र से डर लगता है।
इश्क़ में भी हैं बहुत, खा़र से डर लगता है।
सत्य कुमार प्रेमी
धोखा
धोखा
Sanjay ' शून्य'
ये आँखें तेरे आने की उम्मीदें जोड़ती रहीं
ये आँखें तेरे आने की उम्मीदें जोड़ती रहीं
Kailash singh
अपनी लेखनी नवापुरा के नाम ( कविता)
अपनी लेखनी नवापुरा के नाम ( कविता)
Praveen Sain
होली गीत
होली गीत
umesh mehra
🌷 सावन तभी सुहावन लागे 🌷
🌷 सावन तभी सुहावन लागे 🌷
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
Loading...