अहीर छंद (अभीर छंद)
अहीर छंद—– ११ मात्रिक छंद
विधान–कोई भी कलन मापनी ले ,
चरणान्त:- जगण (१२१) अनिवार्य है ।
चार चरण , दो-दो सम तुकांत, या चारों सम तुकांत।
अहीर छंद { विधान )
मात्रा ग्यारह भार | अंतिम जगण विचार ||
बनता छंद अहीर | चार चरण तकदीर ||
अनुपम छंद अहीर | ग्यारह दिखे शरीर ||
अंतिम जगण प्रकाश | चारों चरण सुभाष ||
कहने में सुर ताल | करता छंद कमाल ||
दिखता मधुर प्रवाह | मानों मित्र सलाह ||
चरण समझकर चार | तुक को करें शुमार ||
दो-दो करें सुगान | अथवा एक समान ||√
सुभाष सिंघई
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इस अहीर छंद को यदि किसी विषय को लेकर लिखा जाए , तब एक सार्थक तथ्य कहने का अवसर प्रवाह बनता है
अहीर छंद , बिषय–बोल
हो जाती जब रार | नहीं मिले उपचार ||
वचनों की तलवार | अंतस करे प्रहार ||
बोली का मधु घोल | होता है अनमोल ||
दिखती जहाँ दरार | भरता जाकर प्यार ||
कैसे हैं यह भाव | रखें मूँछ पर ताव ||
बनते हैं खुद राव | जाते देकर घाव ||
बोल में यदि मिठास | बनता दुश्मन खास ||
होता नहीं उदास | कहता कथन सुभास ||√
सुभाष सिंघई
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अहीर छंद _ बिषय- पर्यावरण
करते पेड़ पुकार | विनती है शत बार |
करना अनुपम प्यार | मत करना संहार ||
जीवन में जलधार | करती है उपकार ||
करता बादल प्यार | जहाँ पेड़ भरमार ||
पर्यावरण सुधार | मन में भरे खुमार ||
शीतल मंद समीर | हरण करे सब पीर ||
जंगल करे निरोग | बनते सुंदर योग ||
सुष्मा हरित सुभोग | होते हैं खुश लोग ||
जंगल हुए विलीन | किए काटकर हीन ||
खुद की दौलत छीन | लगता मानव दीन ||
सुभाष सिंघई
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विषय – किसान
मन की बात बजीर | करते पेश नजीर ||
क्या भारत तकदीर | बदलेगी तदवीर ||
देखो आज किसान | कैसे देश महान ||
उसकी मिटे न भूख | दिखता तन मन सूख ||
कैसी अब सरकार | मँहगाई इस पार ||
मरते रहें किसान | जलते है शमशान ||
कागज पर दिन रात | चले घात पर घात | |
कौन करे अब बात | किसको कृषक सुहात ||
सुभाष सिंघई
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आधार – अहीर छंद- 11-11 ( मात्रिक छंद)
चरणान्त:-प्रत्येक चरण के अंत में ( जगण १२१) अनिवार्य है ।
चार चरण , दो-दो सम तुकांत, या चारों सम तुकांत |
( अपदांत गीतिका )
खुद करते गुणगान , मैं हूँ खरा महान |
बनते स्वयं सुजान , रखते खूब गुमान ||
जिनके तुच्छ विचार , फैलाकर वह रार ,
दे उठते वरदान , जैसे हों भगवान |
देखा उन्हें टटोल , जिनका जरा न मोल ,
झूठा तना वितान , पूरे सकल जहान |
अंधी चलकर चाल , खुद को करें निहाल ,
कटुता का रस पान , बाँटे आकर दान |
जिनके नहीं उसूल , करते कर्म फिजूल ,
चौतरफा नुकसान , कागा काटत कान |
देखे तिकड़म बाज , रहें बजाकर साज ,
करते अटपट दान , फटी पेंट बनियान |
अपना लाकर ठोल , जिसमें अंदर पोल ,
पोलों में दिनमान | कहें ठोककर ज्ञान |√
सुभाष सिंघई
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