अहसास
कैसे रोकू इन घटाओ को
जो लिपटती हैं मुझसे तेरे गेसू बन कर !
जवाब क्या दू झील के हर कमल को
जो पूछते हैं मुझसे तेरी नजर बन कर !!
फूलो की हर एक तबुस्सम अब भी
झुक के देती है सलाम तेरा !
मेरे माजी की हमराज वीरान सड़कों का
हर एक झोंका देता है अहसास तेरा !!
शोख कलियों पर शबनम का पहरा,
रोक लेती है कदम बन कर आँचल तेरा !
सर्द कुहरे में घिरी चान्दनी अब भी,
सिहरा देती है बन के पहला पैगाम तेरा !!
मचलते अरमान और लड़खड़ाते कदम तेरे,
बोलती हुई आँखे और भरभराते हुए होठ तेरे !
सुर्ख आरिजो पे वो भटकती तबुस्सम तेरी,
बिखरे गेसुओ मे लिपटी कोई कहानी तेरी !!
मिट ना जाये कही मेरी हस्ती इसे मिटाते मिटाते,
गुजरे जमाने के हर अहसास को दामन से छुड़ाते छुड़ाते !
दिल में उठती हर इक उमंग हर इक कसक को,
थक ना जाऊ कही मै यूँ ही बहलाते बहलाते !!