अहसासे ग़मे हिज्र बढ़ाने के लिए आ
अहसासे ग़मे हिज्र बढ़ाने के लिए आ
इस बार मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
बेचैन तेरे वास्ते कब से हैं निगाहें
आ दिल पे मेरे बर्क़ गिराने के लिए आ
मालूम है मुझको तेरी फ़ितरत की हक़ीक़त
झूठा ही सही प्यार जताने के लिए आ
अब जान ही ले ले न कहीं दर्दे – जुदाई
तू वस्ल की तक़दीर सजाने के लिए आ
है वक़्ते नज़ा आ मुझे बाहों में तू भर ले
इस आख़री हसरत को मिटाने के लिए आ
दो फूल मेरी क़ब्र पे रख दे कभी आकर
तुर्बत पे मेरी शम्आ जलाने के लिए आ
इस बज़्म में आसी की मुहब्बत का भरम रख
इक बार ही, दुनिया को दिखाने के लिए आ
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सरफ़राज़ अहमद आसी