” अहम से वहम तक ,, ( The mental troma ) Part 1😞😞
भूमिका : ” अहम से वहम तक ,, आखिर क्या है ?? ” अहम ,, और क्या है ” वहम ,, आखिर ऐसा क्या है जीवन में जिसके कारण जीवन में इतना ” अहम ,, आ गया , और ऐसा क्या घटता है जीवन में जिसके घट जाने के बाद पता चल जाता है कि जो कुछ भी जीवन में अब तक ” अहम ,, बना हुआ था वो सब कुछ तो महज एक” वहम ,, निकला , जो कल तक सारे जीवन का केंद्र बना रहा जिस पर जरा सी ठेस लग जाने से एक गहन पीड़ा का अनुभव होता रहा ऐसा क्या हुआ कि एक ही पल में सारा ” अहम ,, वहम ” में बदल गया है और ये ” वहम ,, एक गहरी शून्यता का अनुभव करा रहा है ,,
” अहम से वहम तक ,, और कुछ भी नहीं सिवाय एक पीड़ादायक यात्रा के ये यात्रा है ” शून्य से शिखर तक ,, कि ” अर्श से फर्श तक कि ,, यात्रा है ” उन्नति से पतन कि ,, यात्रा है ईश्वर कि सत्ता से साक्षात्कार कि, यात्रा है एक अत्यंत पीड़ादायक सदा सर्वदा विराजमान ” शाश्वत सत्य ,, कि और कुछ नहीं !!
हमारे एक ही जीवन में न जाने कितने ही किरदार आते है जाते है कुछ ऐसे किरदार आते है जिनके न तो आने का पता चलता है और न ही जाने का , वही कुछ किरदार ऐसे आते है जिनके आने का समय तो पता नहीं चलता लेकिन जाने का समय बहुत ज्यादा पता चलता है , क्योंकि वो खास किरदार अपने पीछे निशान के तौर पर छोड़ जाते है बहुत सी पीड़ा दायक यादें मन को दुख से भर देने वाले ” पीड़ादायक अनुभव ,,
साधारण रूप से हर आदमी भावनात्मक तौर पर ” ईमानदार ,, भावुक ” वफादार ,, और ” जिम्मेदार ,, ही होता है लेकिन जीवन में मिलने वाले भांति_ भांति प्रकार के” पीड़ादायक ,, अनुभव इंसान के चरित्र कि दिशा बदलने में विशेष भूमिका निभाते है , इंसान को अपने प्रिय जनों से मिलने वाले पीड़ादायक अनुभव ही ये तय करते है कि इंसान कि मनोदशा मे ” सकारात्मक ,, परिवर्तन कितना आयेगा और ” नकारात्मक ,, परिवर्तन कितना ??
सामान्यतः इंसान पहली बार जिस भी रिश्ते को बाहरी लोगों से बनाता है वो अपना पूरा ” 100% ,, ईमानदारी के साथ देता है अगर वो बदले में उतना ही ” प्रेमभाव ,, उतना ही ” समर्पण ,, बदले में पाता है तो इंसान कि मनोदशा में भारी मात्रा में ” सकारात्मक ,, परिवर्तन आता है , लेकिन बदले में अगर उसे ” पीड़ा ,, ” अपमान ,, विश्वास का घात ,, मिलता है तो इंसान कि मनोदशा में ” नकारात्मक प्रभाव ,, बहुत गहराई से अपना अधिकार जमा लेता है !!
मनोदशा में पड़ा ” नकारात्मक प्रभाव ,, उसे बार बार ये मान लेने के लिए मजबूर करता है कि ” विश्वास ,, प्रेम ” समर्पण ,, और इंसानी भावनाओं का संबंधों में कोई मूल्य नहीं ,, यदि कोई प्रधानता है तो केवल ” स्वार्थ ,, कि जब तक अपने स्वार्थ कि सिद्धि नहीं हो जाती तब तक हर संबंध मजबूत है हर इंसान अपना है , जब स्वार्थ कि सिद्धि पूरी हो जाए उसी क्षण से न तो संबंध मजबूत है न कोई अपना प्रेमी अर्थात हर संबंध कि आधार शीला केवल स्वार्थ सिद्धि है , ये मानसिकता धीरे धीरे इंसान के पूरे दिमाक पर काबू पा लेती है , हम मित्र बनाते है मित्रता के वशीभूत होकर क्या क्या नहीं करते मित्रता को मजबूत बनाने के लिए मित्र को पूर्ण” समर्पण ,, करते है बिना कुछ भी विचार किए मित्र के सभी कार्यों में सहभागी बनते है !!
मित्र के बुरे समय में अपने” सामर्थ्य ,, अनुसार सहायता करते है लेकिन इतना सब कुछ करने के बाद भी बदले में मित्र से ” अपमान ,, मिले ” विश्वास घात ,, मिले ” उपेक्षा ,, मिले तब एहसास होता है एक गहन पीड़ा का उस ” पीड़ादायक ,, यात्रा का जिसे हम जानते है ” अहम से वहम तक ,, हम किस कदर मित्र को ” अहम ,, मान चुके थे मान चुके थे , कि मित्र जीवन पर्यंत साथ देगा सुख में भी दुख में भी , हम मान चुके थे कि मित्र जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है , लेकिन जो कुछ भी माना था वो सब कैसे एक ही पल में ” वहम ,, बन गया कल तक जो मित्र ” अहम ,, बना हुआ था वही मित्र अब बस एक ” वहम ,, बन गया है !!
” अहम से वहम तक ,, कि इस पीड़ादायक यात्रा में छाप छोड़ गई एक ” निराशा ,, एक हताशा ,, जो मित्रता के प्रति पीड़ा का प्रतीक बन के जीवन भर साथ रहती है , एक इंसान अपने समग्र जीवन में ऐसी कई यात्राएं ” अहम से वहम तक ,, कि करता ही रहता है , यात्रा के रूप बदलते है , नाम बदलते है लेकिन यात्रा कभी नहीं रुकती , यात्रा कभी ” स्मरणीय ,, तो कभी ” विश्मरणीय ,, अनुभव अपने पीछे छोड़ जाती है कुछ नाम और कुछ रूप भी याद आते है इस यात्रा के जैसे ….
” प्रेमी ,, भी इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होता है जिस पर से गुजरे बिना इस यात्रा में ” निखार ,, नहीं आता ,, विशुद्ध प्रेम ,, आज भी बस एक ” कोरी कल्पना ,, मात्र है जिसका काफी बोल_ बाला सुन रक्खा है हम सभी ने , लेकिन सिर्फ किस्से कहानी में मन में अक्सर एक प्रश्न ” बिच्छू ,, कि तरह डंक मारता ही रहता है और इस प्रश्न का ” विष ,, मानो जैसे सारे मन को विषयुक्त कर देता है सोचने और समझने कि क्षमता को मानो बाधित सा कर देता है एक गहन सोच एक गहन विचार में डुबो देता है और वो प्रश्न है कि , कोई क्यों प्रेम करे ? कोई क्यों प्रेम में ईमानदारी दिखाए ? कोई किसी को क्यों समर्पित करे अपने आप को प्रेम में ? क्या मिलेगा इस सब से भला क्या जरूरत है ये सब करने कि ? अगर बदले में छल कपट दुख दर्द पीड़ा और ” अपमान ,, ही मिलना है तो क्या जरूरत है विशुद्ध प्रेम कि ??
दो लोगों में किसी एक के लिए बहुत आसान होता है दूसरे को दुख देना दूसरे के साथ छल _कपट करना लेकिन , जिसे प्रेम में दुख मिलता है पीड़ा मिलती है वहीं जनता है कि ये ” हृदयविदारक ,, अनुभव कैसा होता है ?? प्रेम में कोई एक होता है जो पूर्ण रूप से समर्पित होता है , कोई एक होता है जो हृदय कि गहराइयों से दूसरे को प्रेम करता है और दूसरे को मिले इस ” अमृत स्वरूप ,, प्रेम कि कोई कदर नहीं होती दूसरे को लगता है कि उसे जो निश्चल प्रेम मिल रहा है वो तो उसकी जन्मजात संपत्ति है जो उसे मिलनी ही थी , इस कारण सामने वाला मिले हुए ” अमृततुल्य प्रेम ,, कि कीमत नहीं जानता या फिर किसी के पास इतने चाहने वाले होते है कि उसे किसी एक के प्रेम कि कोई कीमत ही नहीं पता होती ,,
किसी के लिए ये कह देना कितना आसान होता है कि क्या मैने कहा था ये सब करने के लिए ?? कहने से पहले कहने वाला ये भी नहीं सोचता कि जिसे कह रहा है उसे कैसा लगेगा , कितनी पीड़ा होगी सुनने वाले को ?? कहता तो कोई नहीं कुछ करने को लेकिन बजाय ये देखने के कि सामने वाला कितनी हद तक प्रेम में डूबा है , उसके लिए हर परेशानी उठा रहा है , संघर्ष कर रहा है , कितना त्याग कर रहा है , वो केवल अपने घमंड में चूर है , अगर कोई किसी से अपने लिए थोड़ा समय मांगे तो क्या इसका मतलब ये होता है कि सामने वाले के पास कोई काम नहीं है सामने वाला बेकार है सामने वाले का कोई सम्मान नहीं, इतना घमंड है लोगो को अपने आप पर लेकिन इस तरह के विचार किस हद तक इंसान को अपमानित महसूस कराते हैं !!
ये केवल वही इंसान जानता है जिसने ये ” अपमान ,, ये पीड़ा महसूस कि हो झेली हो बर्दाश्त कि हो और हद तो तब हो जाती है इतनी” जिल्लत ,, इतना ” अपमान ,, सहने के बाद भी हम किसी को प्रेम देने से मना नहीं करते , उसे वैसा ही” प्रेम ,, वैसा ही ” समर्पण ,, वैसा ही अपनापन देते है जैसा पहले देते है , सोचता हूं कितना ” सौभाग्यशाली ,, होता है वो इंसान जो अपमान और पीड़ा देने के बाद भी बदले में ” प्रेम ,, और ” सम्मान ,, ही पाता है और कितना ” दुर्भाग्यशाली ,, है वो इंसान जो प्रेम और सम्मान के बदले में भी पाता है तो सिर्फ पीड़ा और अपमान , अपमान भी ऐसा जो जीवन में एक गहरी अमिट छाप छोड़ जाता है एक गहरी पीड़ा का स्त्रोत छोड़ जाता है …. बस यही सब देखकर सोचकर महसूस करके मन भारी हो जाता है और हाथ मजबूर हो जाते है ” कलम ,, उठाकर कुछ लिखने को न लिखा जाए तो न मन हल्का होता है न घुटन कम होती है,, बस यही “अहम से वहम तक ,, कि यात्रा है जो मन को लगातार ” पीड़ित ,, करती ही रहती है दुख कि बात तो ये है कि इस यात्रा के पड़ाव तो ” अनगिनत ,, है लेकिन विश्राम अथवा अंत कही नहीं ,, जन्म से शुरू हुई यात्रा मृत्यु तक अनवरत चलती ही रहती है ,, और इंसान अजीवन इस यात्रा के कारण असंख्य पीड़ाओं का भंडार एकत्रित कर लिया है , उम्मीद है इस “अहम से वहम तक ,, कि इस छोटी सी यात्रा में आपको कुछ क्षणिक आनंद अवश्य मिला होगा कुछ पीड़ादायक अनुभव अगर आपको याद आए हो तो उसे Comment Section में जरूर साझा करे !! 🙏🙏🙂🙂