अहमियत
उजाला फैलाओ इतना
अंधेरा मांगे पनह दोस्तों
मोहब्बत का जलाओ ऐसा दीप
नफरत न हो कहीं दोस्तों
चले जब साथ साथ सब
जिन्दगी में काहे का मलाल है
रोशन था हर कौना कौना
दिखी न कहीं कोई बुझी मशाल
बढता जा रहा था अंधेरा
बाट जोहती द्वार पर
आँखे थी थकीं थकीं
जब दी दस्तक अजनबी ने
तेल बाती से किया उजाला
देखा जब बुजुर्ग ने धुन्धले में
बेटा था उसका वही
हुआ था शहीद जो कल ही
कैसे करें यकीं
ये सपना है या हकीकत
मत गुमान मत कर अंधेरे
अपने काले साये पर
तभी तलक है
अहमियत तेरी
जब तलक उजागर
न कर दे उजाला
तेरी असलियत
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल