*अहं ब्रह्म अस्मि*
शीर्षक : अहं ब्रह्म अस्मि
विधा : कविता
लेखक : डॉ अरुण कुमार शास्त्री – पूर्व निदेशक – आयुष – दिल्ली
उस शक्तिमान की अनुपम रचना हूँ , मैं महान हूँ ।
एक अनूठा , अपने जैसा , एक अकेला सृजन हूँ ।
मेरे समान न हुआ न है न होगा क्योंकि मैं विधान हूँ ।
अद्भुत हूँ , विशेष हूँ , एकता में अनेकता का भाव हूँ ।
शक्ल से अक्ल से बिल्कुल अनोखा परिधान हूँ ।
उस शक्तिमान की अनुपम रचना हूँ , मैं महान हूँ ।
मैं ही कार्य हूँ , कारण हूँ , दोनों से उत्पन्न प्रकरण हूँ ।
नीति का न्यायपूर्ण अविलंब एकाकी प्रतिबिंब हूँ ।
शरीर से नाशवान लेकिन आत्मा से अमर अविनाशी हूँ ।
उस शक्तिमान की अनुपम रचना हूँ , मैं महान हूँ ।
जो भी सीखा इस जगत में मेरे संस्कार हो गए ।
अणु – अणु जब जुड़ गए तो बृहद आकार ले गए ।
एकादश के मूल का अविरल, साक्षात प्रमाण हूँ ,
साथ – साथ प्रकृति का सुन्दर सुगढ़ वितान हूँ ।
उस शक्तिमान की अनुपम रचना हूँ , मैं महान हूँ ।
एक अनूठा , अपने जैसा , एक अकेला सृजन हूँ ।
मेरे समान हुआ न होगा क्योंकि स्वयं मैं विधान हूँ ।
समय की परिधि में बंधा, भूख प्यास श्वास से युक्त ।
हाड- मांस का मानस मैं भावनाओं से सजा हूँ ,
बुद्धि, बल, ज्ञान, संज्ञा और प्रज्ञा का सोपान हूँ ।
एक अनूठा , अपने जैसा , एक अकेला सृजन हूँ ,
मेरे समान हुआ , न ही होगा क्योंकि मैं ही विधान हूँ ।