अहंकार
जिसने भी अहंकार का स्वाद चखा है,
अहंकार ने फिर उसे कहीं का नहीं रखा है।
जब ज्ञान का अहंकार अंधा बनाता है,
तो अहंकार का ज्ञान कहाँ रह पाता है।
अहंकार तो सिर चढ़ कर बुद्धि हर लेता है,
प्रेरणा और सकारात्मक स्पंदन तो गर्व ही देता है
अहंकार मूर्खता की ऊंचाई पर ले जाता है,
जहां से गिर इंसान चकनाचूर हो जाता है।
जब चक्र चलता है अहंकार में खुदा बनने का,
चक्र शुरू हो जाता है इंसानियत से ही गिरने का
गिरने पर ही अहसास हो पाता है,
तब तक तो सर्वनाश हो जाता है।