* अहंकार*
“अहम्, अहंकार एक अभिशाप
इसमें इंसान को इंसान ना दिखता साफ
सिर्फ अपनी बातों पर यकीन
और खुद पर होता है उसको अंधा विश्वास
ना किसी के सम्मान की फ़िक्र
ना किसी को समझना आता उसे रास
इतना डूब जाता है वह अपनी ही साये में
के उसको दूसरों का अक्स दिखता कहाँ साफ
दिखावे की चादर ओढ़े,अपनी ही तूति बोले
वक्त की मार ही उसके अँधे अहंकार को तोड़े
ईश्वर को भी वह बस दिखावे के लिए माने
राम-राम जपे तो बस अपने स्वार्थ के लिए
रामायण में क्या लिखा उसे कुछ रहता ना याद
इस “मैं”से बचाए ऐ रब सबको
क्योंकि इसका अस्तित्व रहता पल भर का
फिर उसके बाद तो
अफसोस और पछतावा ही लगता हाथ”