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16 Oct 2017 · 2 min read

अहंकार और क्रोध

क्रोध के वशीभूत हो जाने पर मनुष्य का खुद पर से नियन्त्रण खत्म हो जाता है ..
क्रोध व्यक्ति की सोचने समझने की शक्तिको नष्ट कर देता है क्यूँकि यह बुद्धि और विवेक को हर लेता है कभी कभी क्षणिक क्रोध की वजह से हम अपनी प्रिय वस्तु या प्रिय व्यक्ति को खो देते हैं और बाद में पछताने और आँसू बहाने के अलावा कुछ नहीं रह जाता है .रावण का ही उदाहरण लेते हैं परम ज्ञानी होते हुये भी अंहकार और क्रोध में सबकुछ गँवा बैठा
कहावत जो जगजाहिर है
एक लख पूत सवा लख नाती
ता रावण घर दिया ना बाती
क्रोध में कहे गये शब्द दिल को चीरकर निकल जाते हैं कहा भी गया है शरीर का जख्म भर जाता है पर आत्मा पर लगा जख्म कभी नहीं भरता क्रोध दिलों में दूरियाँ पैदा कर कर देता है क्रोधी मनुष्य परिवार और समाज से कट जाता है हँसमुख और मिलनसार व्यक्ति से सब मिलना चाहते हैं जबकि क्रोधित व्यक्ति से बात करते हुये लोग कतराते हैं ..पता नहीं उसको कब किस बात पर क्रोध आ जाये और वो अपना या सामने वाले का अहित कर बैठे..क्रोध के साथ अगर मैं (अहम) आ गया फिर तो हो गया सोने पर सुहागा यानी फिर कोई नहीं बचा सकता …बड़ा और ताकतवर पेड़ अगर सीधा तनकर खड़ा होता है तो हल्की सी हवा के झोंके से वो टूटकर गिर जाता है ….जबकि छोटा और नाजुक पेड़ अपने लचीलेपन से बड़ी बड़ी आँधियों से भी लड़ जाता है ….कोई भी आँधी उसे उखाड़ तो क्या टस से मस नहीं कर पाती …
इसी तरह विनयशील मनुष्य को कोई नहीं तोड़ सकता

क्रोधित होकर रे मनुज , क्यूँ तू आपा खोय |
बनती बात बिगाड़ दे ,रहता पास न कोय |
……रागिनी गर्ग……
रामपुर यू.पी .
कॉपीराइट
15/10/2017

Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 991 Views

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