अस्मत
अस्मत
बेतहाशा लड़खड़ाती दौड़ती पग मे,
चित्कारती फटी नजरों से ढूंढती सहारा।
कपकपाती अधरों पर टूटती सांसें,
ढूंढते नैना पगडंडियो पर कोई फरिश्ता।।
अनिश्चितताओं के बादल उसके अंतस में,
ओझल अनंत तक छाया मन में अंधियारा।
संज्ञाशून सब जड़ चेतन जग में,
सोचती कौन मिलेगा खेवनहारा।।
सरेआम लूटती अस्मत,
दुपटी में छिपतीअबला।
मौन भुवन हो देखें,
यह क्या है तहजीब हमारा।।
फटे वसन लुटे तन,
बदहवास हो फिरतीअबला।
देखो विकास की बहती,
अब यह कौन सी धारा ।।
हाहाकार उसके अंतस में,
बिलखाते उसके नैना।
पिशाच-पशु सम मानव,
गिद्धों सा नोचे तन सारा।।
छपटाती लूटती अस्मत,
याचना करती नीरीह बाला।
कौन घड़ी आई देखो,
अब चौराहे पर लुटता घर सारा।।
औरो से अस्मत की रक्षा,
सती हो जाती थी अबला।
दौर है देखो आया कैसा,
अब छीन गया यह हक सारा।।
अस्मत को लूट के उसका,
जलाकर बनता भोला भाला।
कौन बाट से जाए अबला,
हर मोड़ पर मिलता हत्यारा।।
———-सत्येन्द्र प्रसाद साह (सत्येन्द्र बिहारी) ———–