अस्पृश्यता
।। अस्पृश्यता ।।
अरे !
ये नीच है ..
इस के हाथ का खाया …
अब तू ,ब्राह्मण, क्षत्रिय नहीं रहा ।
इसे गाँव से निकालो ..
नग्न करो ,
मार डालो ।
इस नीच ने मंदिर में प्रवेश किया ,
पानी को छू लिया ,
मारो इसको , गौमूत्र पिलाओ ,
इनकी स्त्रियों के कपड़े फाड़ो ,
गंजा करो ।
घर बनवाना है ..
बुलाओ उन को .,
पानी लगवाना है ..
बुलाओ उन को ,
मंदिर बनवाना है
बुलाओ उन को ..
पत्थर से भगवान बनाने हैं ..
बुलाओ उन को ..
बच्चे को स्कूल छोड़ना है रिक्शे से .
बुलाओ उन को …
मंदिर में प्रवेश किया उस ने ..
मारो उस को ..
हमारी मूर्तियों को छुआ ..
मारो उन को ..
मेरे पानी को छुआ उस ने …
पानी पीने लायक नहीं फेंको इस को ..
मेरे घर में प्रवेश किया उस ने …
गंगाजल छिड़को ..।
हम विकसित हैं ..
बस कपड़ों से ..
हम विकसित हुए हैं सिर्फ़ ..
संसाधनों से ..
हम विकसित नहीं हैं तो …
सोच से , मानसिकता से …।
माणिक्य / पंकज / चन्द्र प्रकाश बहुगुना