*अस्पताल का बिल (हास्य गीत)*
अस्पताल का बिल (हास्य गीत)
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अस्पताल के बिल का बीमारी से ज्यादा डर है
(1)
हे प्रभु दया करो इतनी घर में मसला निपटाना
बीमारी यदि हो तो घर में रखकर ठीक कराना
अस्पताल का बिल सुनता हूँ लाखों से ऊपर है
(2)
चाट-पकौड़े खाने को बेमतलब नहीं निकलता
निकला भी तो केवल अपने मतलब से ही चलता
अस्पताल के खर्चे का भय अंदर ही अंदर है
(3)
अस्पताल यदि गए बैंक-बैलेंस नदारत होगा
घर के भीतर रखा हुआ सारा धन गारत होगा
काँप रहा मन सोच-सोच कर ही केवल थर-थर है
(4)
अस्पताल में जाकर-आना, अर्ध-मरण कहलाता
अस्पताल जो जाता ,जेवर सब उसका बिक जाता
अस्पताल जो गया,समझ लो बनता घनचक्कर है
(5)
अच्छी सेहत बनी रहे ,इसलिए कसरतें करता
खानपान परहेज निरंतर, संयम से पग धरता
भावी जीवन सिर्फ स्वास्थ्य के ऊपर अब निर्भर है
अस्पताल के बिल का बीमारी से ज्यादा डर है
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451