{{{ अस्तित्व }}}
क्यों समाज सारा मेरे, अस्तित्व को है नकार रहा ,
है ये बोझ एक अभिशाप, ये कह कर पुकार रहा ,,
हो रही है लज़्ज़ित एक माँ की ममता ,
जब बेटे की चाह में ,एक मासूम को कोख में ही मार रहा ,,
मेरे जन्म का अधिकार ,भी क्यों मुझसे है छीन रहे ,
गर्भस्थ बेटी करती चित्कार, मेरे प्राण लेकर तुम्हारा अंतरात्मा
क्या तुम्हे नही धिक्कार रहा ,,
क्यों एक इंसान ही, नारी का शत्रु बन गया है,
उस बेबस को मार कर, कहाँ तू एक इंसान रहा ,,
भ्रुण भी है पूछ रही माँ, कैसे तेरे दिल पत्थर का हो गया ,
तुम्ही तो लाई हो गर्भ में , फिर क्यों मेरा वध हो रहा ,,
बेटे से करते हो लाड़ बहुत, क्यों मुझसे इतना भय है तुमको ,
बेटे करते एक कुल रोशन, बेटी से दो कुल का है मान रहा ,,
आज कूड़े में से बहुत, रोने की आवाज़ है आई ,
नन्ही आंखों ने देखा था,उसे फेकने में अपनो का ही हाँथ रहा ,,
जो मारोगे यू बेटियों को, कोख में ही तो ,
सोचोगे बाद में बेटे का घर बसाने का सपना, एक सपना ही रहा ,,
कभी गर्भ में तो, कभी जन्म के बाद हुआ ,
क्यों ये परिवार, समाज हमे निर्दयता से है मार रहा ,,
नही हैं हम किसी भी, नर से कम ,,
हर शक्ति में हैं बस , नारी का ही वास रहा ,,
हमे भी दिया था ईश्वर ने, ज़िन्दगी ज़ीने का अधिकार ,
आज जिसे तुम मार रहे … कन्या पूजन को संसार सारा ढूंढ रहा ,,