अस्तित्व भारत का
हम तपे-खपे जल भट्ठी में,
ओ गला सकें औकात नहीं |
उगता सूरज रोक सकें वे,
उनके बस की बात नहीं ||
समय चक्र है,घना अँधेरा,
पल है उनका कुछ खास नहीं |
पर कायम रख लेंगें इसको ,
ऐसी उनकी अब औकात नहीं ||
आयेगा झंझर, टूटेगा ये मंजर,
छतरी उठते ही खुला गगन होगा |
खुद को परिचित कर पायेंगें ,
होगी उनमें इतनी बात नहीं |
हम तपे-खपे जल भट्ठी में,
ओ गला सकें औकात नहीं ||
पं. कृष्ण कुमा शर्मा “सुमित”