अस्तित्व के प्रकृति स्त्रीत्व की पुकार
सजी है संवरी है आज फिर से,
तू फिर भी उदास है,
खामोशी तेरी नाखुश में हाँ है,
मालूम है मुझे,
तू बलात्कारी बना है ..जब से .।
~डॉ_महेन्द्र
भाव:-
अस्तित्व का प्रकृति स्त्रिय भाव आखिर कह उठा,
हे मानव अहंकारी तू प्रेमभावना भूलकर
आज प्रलयंकारी जबरन कृत्य को प्राप्त हो गया .।
महादेव क्लिनिक,
मानेसर(हरियाणा)