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8 Apr 2024 · 1 min read

अस्ताचलगामी सूर्य

•अस्ताचलगामी सूर्य•

“””””””**कहाॅ चले हे सूर्यदेव!!
कहाॅ चले हे सूर्यदेव
जग में अपनी लाली देकर।
लाल रश्मियां पीत हुईं
चल पड़े कहाॅ लाली लेकर?

सरिता हिम सरवर में ऊर्जा
तेज राशि अपनी भरकर।
मधुर प्रात नव पल्लव दे
कहां चले मन को हर कर ?

जीवन के आधार बनें जो
नव गति नव आभा पाकर।
वसुधा का शृंगार सुशोभित
विहॅस रही जो नित धरकर

माना जग पूजता उदित को
पूजा थाल नित्य सजाकर।
अस्ताचल हो चले भले
पथ को हे प्रभु ! निर्मल कर !!
*© मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
८अप्रैल २०२४

Language: Hindi
121 Views

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