असूलों वाले लाला छुन्नूमल
असूलों वाले लाला छुन्नूमल – शाम की शुरुआत हुई थी। लाला छुन्नूमल हलवाई की दुकान पर ग्राहकों की भीड़ हो रही थी। एक कारीगर बड़ी सी एक कड़ाही में गर्म तेल में कच्चे समोसे डाले जा रहा था और दूसरा कारीगर एक चपटी सी कड़ाही में जलेबी तलते हुए अपने हुनर दिखा रहा था। जहां समोसे एक दूसरे से छिटके जा रहे थे वहीं जलेबियां एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर नृत्य कर रही थीं। हर तरह के ग्राहक होते थे, पुरुष, महिलाएं, बच्चे और वृद्ध। जितनी देर में समोसे तल कर तैयार होते और जलेबियां चाशनी में डूब कर मिठास पैदा करतीं उतनी देर में लाला छुन्नूमल भूरे रंग के कागजी लिफाफे मुंह खोल कर तैयार रखते और मीठी-तीखी चटनियों को छोटी थैलियों में बांधे रखते। समोसों और जलेबियों की पहली खेप उतरते ही लोगों के हाथों में पकड़े हुए नोट लाला जी के मुख तक आने लगते। लालाजी विनम्रता से ग्राहकों को धैर्य रखने की अपील करते ‘आप सभी को मिल जायेंगे, कृप्या शांत रहें।’ पर यह क्या? लाला छुन्नूमल ने ग्राहकों की लाईन में पीछे खड़ी एक बेटी को सबसे पहले पूछा ‘बेटी, तुम्हें क्या चाहिए?’ बेटी ने कहा ‘अंकल, मुझे आठ समोसे दे दीजिए’। ‘अभी लो, बेटी और कहकर लाला जी लिफाफे में आठ समोसे पैक करने शुरू कर दिये।
‘मेरे भी आठ समोसे हैं, पहले मुझे दो, मैं लाइन में कितनी देर से आगे खड़ा हूं।’ एक नौजवान बोला। ‘बेटे, अभी तुम्हें भी देता हूं, ज़रा बेटी को पहले दे दूं’ कहते हुए लाला जी ने बेटी की तरफ लिफाफा बढ़ाया। नौजवान से बर्दाश्त न हुआ और वह क्रोधित होकर अनाप-शनाप बकने लगा। पीछे खड़ी बेटी ने कहा ‘अंकल, पहले आप इन्हें दे दीजिए, कोई बात नहीं मैं बाद में ले लूंगी।’ ‘हां, हां, पहले मुझे दो, कहते हुए उस नौजवान ने लिफाफा ले लिया और पैसे देकर मुड़ने लगा तो निगाह उस बेटी की तरफ गई। ‘भइया, तुम!’ बेटी बोली। अब नौजवान को बहुत शर्म आयी। वह अपनी ही बहन के खिलाफ बोला था। ‘तुम क्यों लेने आयी हो, मैं आ तो गया था’ उसने अपनी बहन से कहा। ‘अभी घर में कुछ मेहमान और आ गए थे इसीलिए मां ने मुझे भेज दिया। तुम चलो, मैं भी लेकर आती हूं।’ वह नौजवान सकते की स्थिति में था। ‘तुम ले लो, फिर इकट्ठे चलते हैं।’ लोग भी देख रहे थे। लाला छुन्नूमल जी बोले ‘बेटे, मेरा असूल है कि मैं सामान पहले मां-बेटियों को देता हूं। उन्हें लाईन में खड़े रखना शोभा नहीं देता है।’ नौजवान नज़रें नीची किये खड़ा था और लालाजी ने पहले दोनों भाई-बहनों को सामान दे दिया था।