“असहिष्णुता “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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कहाँ है असहिष्णुता
किसे है तकलीफ
इन शब्दों से ?
हम मर्यादाओं में
ही तो सिमटे हुए हैं !
मर्यादा में ही
रहकर हम धार्मिक
उन्माद को बढ़ाते हैं !
कौन कहता है
अख़लाक़ दाभोलकर
कुलबर्गी असहिष्णुता
के शिकार थे ?
सारे लेखक साहित्यकारों
ने अपनी अपनी
उपाधियाँ लौटायी
उनके पुरष्कार ही बेकार थे !
मानते क्यों नहीं हो
जब देश के महान् पुरुष
खेर ,शाह कह रहे
सबकुछ सब ठीक है !
फिर देश को
क्यों बदनाम करने पर
तुले हो ?
हाँ हमने गुलाम अली को भगाया
पुस्तक बिमोचन में
सुधेन्दु को नचाया और कालिख
भी लगाया !
फिर हम शाहरुख़ को कैसे
छोड़ सकते है ?
हम भले असहिष्णुता के
शिकार हो पर
मुस्लमान कैसे बोल सकते है ?
बिचारों की अभिव्यक्ति
तुम कर सकते हो
पर परिणाम भुगतने
के लिए तैयार रहो !
क्योंकि अबतो
इतने दिनों के
बाद हमें अवसर मिला है,
प्रचार कुछ भी हो
हम अभी भी
सहिष्णुता का लिबास
पहने हुए हैं ।।
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
भारत