असहज सवाल!
जिन बातों में सहमति नहीं होती,
बार बार जब वह सामने आ जाती,
दिल चाहता है उनसे ना हो जाए सामना,
जिनके जवाब देने में मन हो जाए अनमना,
अक्सर वही बातें पूछ कर क्यों,
असहज करते हैं लोग!
ऐसा भी नहीं,
यह सवाल कुछ लोग ही पूछते हैं,
अपितु कभी कभी अपने भी पूछते हैं,
और टालने पर,
कुरेदने लगते हैं,
भांति-भांति के सवालों के साथ,
उन्हें अपने ही अंदाज में उकेरने लगते हैं,
कभी कभी तो कोई हदें पार कर जाते हैं,
और बर्दाश्त करने की हिम्मत ज़बाब देने लगती है,
तब कभी,
उमड़ पड़ता है,
गुस्से का उबाल,
और पलट कर,
होता है सवाल,
तुम चाहते क्या हो,
क्या मंशा है, तुम्हारी
क्यों पिछे पड़े हो,
पर जब सामने कोई ढीठ खड़ा हो,
अपने सवाल पर अड़ा हो,
तब कुछ अनहोनी की आशंका,
मन को विचलित करने लगती है,
कुछ घटित होने की संभावना दिखने लगती है,
पर सवाल तब भी अनुत्तरित ही रहता,
कोई ठोस जवाब तब भी नहीं मिलता है,
ऐसे कई सवाल,
जिनके होते नहीं हैं जवाब,
या जो दिये नहीं जा सकते,
या फिर जो टाल दिए जाते हैं,
उन पर कोई जब ज्यादा ही तवज्जो देदे,
तब रिश्तों में खटास का आना,
अविश्वास के साथ,
बेगाना पन का बढ़ जाना,
और अपने किए गए सवाल पर अड़ जाना,
कहां तक वाजिब है,
बचना चाहिए,
ऐसे अवसर पर,
समझदारी से,
मुस्करा कर,
टाल देना चाहिए,
कुछ समय के लिए,
कभी कभी,
समय आने पर,
ऐसे सवालों के जवाब,
स्वयं ही हल हो जाते हैं,
और साथ ही,
गृहस्थियां बिखरने से बच जाया करती हैं,
हालात को,
अपने अनुकूल करने की कला,
सीखना भी जरूरी है,
घर गृहस्थी को,
खुशहाल रखना हमारी मजबूरी है,
कभी कुछ न कह कर भी,
बहुत कुछ कह लिया जाता है,
मां बाप के साथ साथ,
बच्चों के लिए भी,
खुशनुमा माहौल बनाए रखना भी,
हमारी ही जिम्मे है,
और इसी के लिए,
कुछ कदम पीछे खींच लेना ही समझदारी है,
अहम को अहंकार में बदल देना,
ना समझी है,
गृहस्थी में अहम की भूमिका,
बिखराव की जननी है!