असली रावण
बीत गया दशहरा दहन हो गया रावण
क्या रावण संग जले हैं कलयुगी रावण
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक
अधर्म पर धर्म जीत का भी कहें प्रतीक
प्रतिवर्ष हमें सीखाई जाती है यह सीख
हम आज भी माँगते हैं अन्याय की भीख
फिर क्यों करते हैं ये सब पांखड आंडबर
बुराई असत्य अधर्म के नाम पर आंडबर
रावण अवगुण जान भूले गुण ज्ञान भंडार
खुद अवगुणों से ग्रस्त,गुण एक करें प्रचार
रावण के हरण कर किया परस्त्री सम्मान
आज मानव शरण देकर करे स्त्री अपमान
बहन रक्षा में सीख हेतु किया घातक काम
क्या आज कोई भाई कर सकता यह काम
जो निज रक्षा में असमर्थ कैसे होगा समर्थ
बातें करनी है आसान क्रियान्वयन मुश्किल
क्यों हो धर्म अधर्म अच्छाई बुराई मुवक्किल
आज भी नारी कहाँ पर सम्मानित सुरक्षित
नेता अभिनेता सत्ताधारी शक्तिशाली रक्षित
झांककर गरिबान देखो कितने हैं अवगुणी
बुराईयों से वशीभूत हैं दर्शाते हैं वो सर्वगुणी
क्या वो दिन भी कलयुग में हमें दिख पाएगा
जिस दिन हर कोई मन का रावण मार पाएगा
सच हो यदि यह सपना वो दिन होगा पवित्र
सचमुच आनन्दित हों मनाएंगे दशहरा सचित्र
सुखविंद्र सिंह मनसीरत