असलीयत
मैं मानता हूँ शरीर वस्त्र है,सब माया है।जो दिखता है सब मिथ्या है,लेकिन मेरे कहने से कुछ भी मिथ्या होने वाला नही है।।जब कोई इन सब को भोगता है तब उसे पता चलता है मिथ्या क्या है सत्य क्या है।।भगवान शंकराचार्य जगत मिथ्या का प्रवचन दे सकते है ।।ओशो अपनी अकाट्य तर्क शेली में सब को माया साबित भी कर सकते है।।भगवान बुद्ध के लिए भी कहना आसान है कि सब माया है।।लेकिन इस माया में जीना कितना दुष्कर है कितना कठिन है यह जीने वाला ही जानता है ये बाल ब्रह्मचारी नही जानते।।
जीवन संघर्ष है या चक्रव्यूह है यह तो उसमें घुसने के बाद ही पता चलता है।।मन मे आता है सब माया है इन्हें छोड़ के सन्यास अपना लें या छुपे शब्दो मे इनसे भाग निकलें तब पता चलता है कि देश मे साधु संतों और फकीरों की इतनी बड़ी गिनती क्यों है।।ये कोई माया का पता लगाने वाले लोग नही है ये बहुत बड़ी मात्रा में जीवन की चुनोतियो से घबराए हुए भगोड़े है।।मैं जीऊंगा या मरूँगा यह अलग कहानी है लेकिन मैं अभिमन्यु को फॉलो कर रहा हूँ ओशो को नही।।हार,घबराहट यह नही कहती कि दूसरों पर बोझ बनो हाँ अपना बोझ हटाते है तो अलग बात है।।
कोई किसी का नही है ।।बेशक नही होगा लेकिन इस ज्ञान के आधार पर क्या कोई अपने बच्चों को छोड़ दे?बीवी को त्याग दे ?माँ बाप का परित्याग कर दें? कोई किसी का नही है यह आधार या विचार संज्ञान में रख कर फिर जो सेवा होगी मैं समझता हूँ वही निश्वार्थ सेवा होगी ।।पहले से किसी से आशा लगाए बिना जो सेवा होगी उसी का आनन्द है।।भारतीय ऋषि परम्परा मनुष्य के उत्थान के सारे मार्ग खोलती है लेकिन दुकानदारों ने उनके ज्ञान को अलग ही ढंग से भुनाना शुरू कर दिया।।
नही जीवन शुद्र नही है,संकुचित नही है।।मैं हूँ तो मुझमे कोटि कोटि ब्राह्मण समाये हुए है इसलिए मैं ब्राह्मण हूँ क्योंकि मेरे होने से ब्रह्मांड है।।वो मुझमे स्थित है इसलिए मैं ब्राह्मण हूँ।।माँ पिता,पत्नी संतान तो मामूली बातें है मेरा विराट स्वरूप तो अंतरिक्ष के भी पार जाता है तो भला मैं किसी को मिथ्या,झूठा,मायावी आदि कह भी कैसे सकता हूँ।।मैं तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड के कतरे कतरे का हूँ।।इतना विराट जब कोई होता है मैं सबसे पहले खोता है।।लेकिन आदमी मैं खोना नही चाहता इसलिए झट से सीमाएं बांध लेता है।।साधु हो या राजा सब इसलिये मिट्टी बन जाते है क्योंकि सबने खुद को सीमित कर रखा है।।और सीमा अहम ही सबसे बड़ी मजबूरी है।।सीमा बताती है कि तुम अलग हो और कोई तुमसे अलग है।।अब तुम्हे श्रेष्ठता सिद्ध करनी है।।बस यहीं आकर सब गुड़ गोबर हो जाता है।।कोई बाहुबली निकल जाता है कोई भरत रह जाता है।।
कोई माया नही तब तक माया नही जब तक मैं जिंदा हूँ।।मेरे बाद तो मैं खुद माया हो जाने वाला हूँ।।???
?चंदन?