असलियत
बचा नहीं कानून का ,पाण्डे बिलकुल खौफ ।
लाठी जिसके हाथ में , विचर रहा बेख़ौफ़।।
विचर रहा बेख़ौफ़ , सभी सलाम ठोंकते।
सीधे सच्चे लोग तंत्र को रोज कोसते ।
सहनशीलता अधिक , शोर फिर नहीं मचा ।
स्वार्थ सिद्ध हो जाय, और कुछ नही बचा ।।