असर
अब निशा की नीरवता
आधुनिकता की भव्यता को समर्पित होकर
सादगी भरे जीवन को मार रही ठोकर
पर चोट तो दिखती नही
वह बाजारों की तरह बिकती नही
वह तो अन्तर्मन की टीस है
झुंझलाते हुए मन की खीझ है
इसमे इमानदारी की पीडा और
मेहनत का संतोष है
पर उसका दुःख तो केवल तेरी
कुसंगति से पैदा दोष है
सोचता संस्कार मे ही कमी रह गयी
मां मन मे ममता भाव घर कर गयी
पर प्रयास की पराकाष्ठा बची है
मन ने सूर्योदय की रचना रची है
ज्ञान के भाव से ही चमत्कार होगा
समय पर ही समय का सत्कार होगा ।