” असंतुष्टि की गाथा “
ये क्या हैं ?
मुझे कुछ समझ नहीं आता ।
हर दूसरे दिन के साथ ,
ये असंतुष्टि एक गाथा बन जाता ।
जब ना देखा तो ,
देखने की तड़प जग जाता ।
जब बात ना हो तो ,
बात बढ़ाने की कई तरकीब याद आता ।
जब ना मिले तो ,
मिलने की लालसा बढ़ जाता ।
मिनटों की बात ,
घंटों में बदल जाता ।
हर बात हर लम्हा ,
उनके और पास कर जाता ।
ना चाहते हुए भी ,
उनकी हर गलती पर प्यार उमड़ आता ।
धीरे – धीरे सब ,
साधारण बन जाता ।
अब उनमें हमे ,
कुछ भी ना भाता ।
अब फिर दिल ,
कुछ नया ढुंढने में लग जाता ।
थोड़ी सी कोशिश करते तो ,
बहुत कुछ बेहतर मिल जाता ।
ये असंतुष्टि की आग ,
फिर उनकी याद दिलाता ।
कभी हम मुस्कराते तो ,
कभी बहुत रोना आता ।
ना चाहकर भी ,
सब कुछ खत्म सा हो जाता ।
यही तो है असंतुष्टि की गाथा ,
दिल पर सिर्फ उनकी यादों का पहरा रह जाता ।