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19 Jan 2024 · 2 min read

अष्टांग योग

दोहा मुक्तक
विषय- अष्टांग योग
मां शारदा की प्रार्थना ,

पूज्या हैं माता सभी , हृदय शारदा ध्यान।

मति मेरी अति मंद मां , तदपि चाहता ज्ञान।

ज्ञान चक्षु देकर हमें ,हे ! मां करें कृतार्थ।

विघ्न हरें मंगल करें ,मांगू मां वरदान।(1)

अष्टांग योग

चित्त वृत्ति चंचल अगर ,नित्य कीजिए योग।

करें योग अष्टांग यदि,शांति वृत्ति उपभोग।

सरल रहेंगे यम नियम, नियमित प्राणायाम।

ध्यान समाधि व धारणा , यौगिक प्रत्याहार।(2)

यम

सत्य अहिंसा आचरण, चोरी कर्म नकार।

ब्रह्मचर्य पालन करें, नहीं दान अधिकार।

पंच समुच्चय जब बने , यम का हो निर्वाह।

अधिकारी यम का बनें , कर संयम विस्तार।(3)

नियम,

शुचिता पालन जब करें , करें निरोगी योग ।

मुस्काते रहिए सदा, संतोषी मन जोग।

स्वाध्याय तप जप करें, प्राणि धान भगवान ।

नियम योग व्यायाम से, दीर्घ आयु का भोग।(4)

आसन,

रखें चित्त को स्थिर सदा, बैठ सुखासन योग ।

आसन का उद्देश्य यह, दूर रहे सब रोग।

होता मल का नाश जब, सभी रोग हों दूर।

मनोवृति हो स्वस्थ जब, सुख शारीरिक भोग।(5)

प्राणायाम ,
कर अनुलोम विलोम यदि, प्राणी सुबह व शाम।

पूरक कुंभक साथ में, रेचक का आयाम।

मन शरीर को जोड़ दे ,प्राण वायु आपूर्ति।

साध श्वसन गति को सदा ,करिए प्राणायाम।(6)

प्रत्याहार,

इंद्रिय प्रत्यागन यहां, मानी प्रत्याहार ।

करे संकुचित अंग सब, कच्छप के अनुसार।

विमुख वासना से करे, बना जितेंद्रिय योग।

अंतर्मुख हो इंद्रियां, साधें सब का भार।(7)

ध्यान ,

याददाश्त कमजोर हो , मन जैसे हो क्लांत।

योग क्रिया अपनाइए, मन को करिए शांत।

चित्त वृत्ति की शान्ति हित, लगा लीजिए ध्यान।

ध्यान लगाकर दूर हों ,भांति-भांति के भ्रांत।(8)

धारणा

ये समाधि सोपान है, प्रथम धारणा जान।

बांध चित्त को ईष्ट से, या चक्रों पर ध्यान।

पंच विकारों को करें, सदा हृदय से दूर।

हों अंतर्मुख इंद्रियां , स्थिर स्वचित्त तब मान। (9)

समाधि,

ध्येय ध्यान ध्याता सहज,होता बोध समाप्त।

स्थिर हो नित्य स्वरुप जब, हों समाधि को प्राप्त।

शुचि नाड़ी शोधन करें , करके प्राणायाम।

सुखानुभूति समाप्त हो, मैं का बोध अप्राप्त।

डॉ. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव “प्रेम”,
8/219 विकास नगर ,लखनऊ 226022
मोब-9450022526

Language: Hindi
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Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
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