अष्टांग-दोहे
?⚪️अष्टांग दोहे ?⚪️
तन मन प्राणन शुद्धता, परम् योग अष्टांग।
जीवन सफल बनाइये, कर गुरु को शाष्टांग।।
यम नियम अरु वासना, प्राणा प्रत्याहार।
धारणा, ध्यान, समाधि से, हो जाये भव पार।।
1 यम?
अंग प्रथम यम-निग्रहः, पंचकर्म प्रधान।
सत्य-अहिंसा-अस्तेय, ब्रह्म-अपरिग्रह मान।।
2 नियम?
इसके नियम भी पाँच हैं, पालन से कल्याण।
स्वाध्याय-संतोष-शौच, तप-ईश्वर प्रणिधान।।
तन-मन पावन शौच से, हर सम्भव संतोष।
सुख-दुःख, सर्दी-धूप सह, तप मेटत है क्लेश।।
शुद्ध विचार अरु ज्ञान का, विनिमय ही स्वाध्याय।
अर्पण ईश को कर्म कर, वह प्रणिधान कहाय।।
3 आसन?
तन स्थिर जिसमें रहे, मनवा जब हर्षाय।
नाड़ी शुद्ध प्रफुल्लता, आसन वही सुहाय।।
4 प्राणायाम?
प्राण नियंत्रण जो करे, मन निर्मल हो जाय।
अंर्त-तन की शुद्धता, प्राणायाम कहाय।।
5 प्रत्याहार?
वाह्य विषय से मुक्त हो, अंतर्मुखी हो जाये।
मन इन्द्रिय बस में सकल, प्रत्याहार कहाय।।
प्रत्याहार साधक बने, तन-मन नही मलीन।
शक्ति अंनत आभास हो, हरि चरणन में लीन।।
6⃣ धारणा?
धारे मन में इष्ट को, शांत चित्त कर पाए।
धारणा के बलबूते पर, मन केंद्रित हो जाय।।
7⃣ ध्यान?
धारणा से इस चित्त को, बिंदु लक्ष्य बनाए।
सतत निरंतर धारणा, ध्यान तेरा हो जाए।।
मन निर्मल हो ध्यान से, राजस-तामस नाश।
सात्विक गुण विकसित करे, मनवा ध्यानन पाश।।
8⃣ समाधि?
ध्येय स्वरूप का भान रहे, ध्यान मगन हो जाए।
तन-मन की सुधि न रहे, समाधिष्ट होइ जाये।।
ध्यान के चर्मोत्कर्ष से, ब्रह्म रूप पा जाये।
समाधिष्ट साधु सकल, ब्रह्मलीन कहलाये।।
ध्यान-समाधि-धारणा, तीनों संयम योग।
बहिरंग योग बाँकी सभी, अष्टांगी सँजोग।।
अष्टांगी पालन करे, धर्मपरायण लोग।
सद्चरित्र उद्दात गुणी, सुख वैभव सब भोग।।
रचना:-✍अरविंद राजपूत ‘कल्प’