अश्क़।
अश्कों की कहानी हम तुम्हें क्या बतायें।
हो खुशी या गम यें तो दोनों में ही आयें।।1।।
हर अश्क की होती है इक ना इक दास्ताँ।
वरना बिन वजह के ये आंखों में ना आयें।।2।।
हर आंखों में होती हैं अश्कों की रवानियां।
होते नहीं है ये कम कितना भी बह जायें।।3।।
दिखते तो हैं अश्क बिल्कुल ही एक जैसे।
पर है यें कौन से ये उसी नजर को बतायें।।4।।
अश्कों का ना हो बसेरा वो आंखें ही नहीं।
है कहीं आंखें जो अश्कों बिन दिख जायें।।5।।
गर हैं दुआयें अश्कों में तो आहें भी तो हैं।
खुशी में आयें मोती वरना पानी बन जायें।।6।।
लगता है वो आखें रोते-रोते ही सो गयीं हैं।
वरना रुख़सार पर ये निशां कहाँ से आयें।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ