अश्रु
ये जल की चंद बूंदें नहीं हैं
जो निर्बाध प्रवाहमान हैं
ये तो स्पष्ट परिणाम हैं
हृदय के कंटक व्यथा का
मन के करूण कथा का
अधरों के अधीरपन का
ये आंखें तो मात्र माध्यम है
अन्तर्भाव बह रहे हैं
संवेदना के उस परम शिखर पर
जहां अभिव्यक्ति शुन्य हो जाती है
ये अश्रु सबकुछ कह रहे हैं
बस टूट गई है आज खामोशी।
स्वरचित।।