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28 Jan 2017 · 1 min read

अश्रु- नाद

…… मुक्तक …..

… अनबूझ नियति ने खेली
जीवन की दुखद पहेली
हे! विकल वेदने मेरी
बन जाओ सुखद सहेली

परिहास किया जीवन का
निर्मल निरीह निर्धन का
मैं विकल अकिञ्चन फिरता
संताप छिपाये मन का

डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ

Language: Hindi
516 Views
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