अश्रु कण
अश्रु कण
आँसुओं के ये लघु कण
स्निग्ध करूणा के दर्पण
शीतल करते अवसाद का आभास
तपती साँसों के ये तरल उच्छ्वास
अश्रु सागर से सिक्त होता आँचल
उमड़े व्यथा वेदना, बन खारा जल
आस बन,कभी टिके द्रिग पुलिनों पर
कभी बरसे अविरल सावन झर झर
मन अनंत पुलकित,आँखें है रोती
मिश्री से घुल जाते ममता के मोती
रेखा