अश्रुपात्र A glass of years भाग 6 और 7
पीहू समझ ही नहीं पा रही थी कि मम्मी को कैसे सम्भाले, कैसे उस से इतनी बड़ी गलती हो गई। नानी बेचारी तो वक्त की सताई हुई थीं, परेशान थीं, बीमार थीं। उन्हें सबके प्यार की साथ कि ज़रूरत थी और पीहू की ज़रा सी लापरवाही ने उन्हें न जाने कहाँ पहुँचा दिया था।
‘पता है पीहू जब कोई अपना, बहुत प्यारा … प्रतीक्षा की लंबी टीस हृदय को दे कर कभी न आने के लिए चला जाता है ना, तो वक्त भले ही गुज़रता रहे … पर हम वहीं के वहीं खड़े रह जाते हैं…।’ पीहू सुने जा रही थी मम्मी कितना समझती थी नानी को तभी तो उन्हें इतने प्यार से सम्भाल रही थीं। सच भी तो था किसी भी माँ का बच्चा इस तरह उसकी गोद में अचानक बात करता हुआ, सपने बुनता हुआ उसे हमेशा के लिए छोड़ जाए तो उसका हाल यही तो होगा। और फिर नानी के अश्रुपात्र में तो न जाने कितने और आँसुओ का बोझ अभी बढ़ना बाकी था।
‘मम्मी तो क्या नानी तभी से …?’
‘नहीं पीहू … माँ को पता था उनके तीन बच्चे और भी हैं… जिनकी पूरी जिम्मेदारी है उन पर। इसीलिए वक्ती तौर पर वो हमारे साथ इस ज़िन्दगी में वापिस लौट आईं थी। वही हम सबकी साज सम्भाल, सब काम वक्त पर करना खाना, सुलाना-उठाना, कहानी सुनाना… पर सच तो ये था कि… उनका दिल उनका सारा ध्यान उस एक क्षण में ही अटक कर रह गया था ….’
‘धीरे धीरे समय यूँ ही अपनी रफ्तार से चलता रहा … पहले हम तीनों बहन भाई पढ़ने और फिर नौकरी ढूंढने में व्यस्त रहे। माँ ने सुरभि और मेरे लिए जो सपने देखे थे उन्हें पूरा करने में कोई कसर न रखी। अपने सब बच्चों की शादी उन्होंने उन्ही की पसन्द से तय की…’
‘और फिर अलग अलग शहरों में अपनी अपनी गृहस्थी में हम कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गए और उधर माँ ..’
‘माँ…?’
‘माँ अपनी खोई हुई बेटी की यादों को अपने पास… अपने साथ रखने के लिए पूरी तरह आज़ाद हो गयी। माँ को हर जगह सुरभि नज़र आने लगी… वो उससे बातें करने लगीं।’
‘वो घण्टों उस स्कूल के बाहर बैठी रहती जहाँ कभी उनकी बेटी पढ़ने जाती थी। उस बाग में आप के पेड़ों के चक्कर लगा लगा कर… अपनी बेटी को आवाज़ें लगाती। नदी किनारे घण्टों बैठी खेलते हुए बच्चों में से अपनी सुरभि को ढूँढा करती…।’
‘ माँ मानसिक रूप से पूरी तरह बीमार हो चुकी थीं। सारी जिंदगी भर पूरे परिवार में सैकड़ों कामों में घिरी हुई रहीं थी वो अब अचानक से आया अकेलापन उन्हें खाने को दौड़ता था। गाँव से आये दिन खबर आती कि माँ दो दिन से स्कूल के बाहर ही सो जाया करती है। लोगों के घरों के बाहर बैठी खाना मांगा करती है…यही नहीं घण्टे भर पहले क्या खाया था … क्या किया था… कहाँ गयी थी सब कुछ भूलने लगी है।’
‘मैंने जब ये बात अजय और सुप्रिया को बताई तो उन्होंने कहा कि उनकी गृहस्थी नई नई है बच्चे छोटे हैं… वो माँ को इस हालत में अपने साथ नही रख पायेंगे। मैं जानती थी पीहू कि तुम दोनो भी ज्यादा बड़े नहीं हो। माँ के यहां आने से तुम दोनों की देखभाल पर असर पड़ेगा। हम सबकी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ जाएंगी। एक बार सोचा भी कि मैं भी अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लूँ पर मैं नहीं कर पाई… सॉरी पीहू मैं नहीं कर पाई…।’ आज पहली बार पीहू ने अपनी मम्मी को बार बार रोते हुए देखा था वरना वो तो बड़ी से बड़ी परेशानियों में भी नहीं घबराती थीं। और भला घबराती भी क्यों वो इतनी स्ट्रांग मम्मी की बेटी जो थीं। आज पीहू को समझ नहीं आ रहा था नानी को दो साल से मम्मी ने क्यों गाँव वापिस नहीं भेजा था
‘पता है पीहू … माँ ने एक बार कहा था मुझसे … सुगन्धा, मुझे जब भी सुरभि की याद आती है मेरा गला हर समय भरा भरा सा लगता है। गले मे आवाज़ अटक सी जाती है… हर आती जाती साँस बोझ सी महसूस होती है। सीने में उठती असहनीय टीस पल पल बढ़ती ही जाती है। न कहीं आने जाने का मन होता है न ही किसी से बात करने का। चार चार दिन हो जाते हैं बाल बनाए और आईने में अपना चेहरा देखे। जीवन में मनचाहा न मिल पाए तो दुख होता है, पर मिल कर अगर छीन लिया जाए… तो इंसान दुख के बड़े से पहाड़ की ढेर सारी गर्द के नीचे …. खुद को दबा हुआ महसूस करता है।’
आज नानी पर जितना प्यार आ रहा उतना है गुस्सा उसे मामा और मासी पर आ रहा था। क्या अपनी माँ को कोई ऐसे छोड़ सकता है… सही किया मम्मी ने जो नानी को अपने साथ ले आईं। एक माँ अपनी सारी परेशानियों के बावजूद अपने तीन चार बच्चों को पाल सकती है, सम्भाल सकती है। पर बच्चे बड़े होते ही सब कुछ भूल जाते हैं… ऐसा होता ही क्यों है… ?
‘मैं तो अपनी मम्मी का हर कदम पर साथ दूँगी… ‘ पीहू लम्बी साँस ले कर बुदबुदाई
शाम को पापा आने वाले हैं… न जाने क्यों मम्मी को इतना यकीन है सब कुछ शाम तक ठीक हो जाने का। चाहती तो पीहू भी यही थी… पर अब वो महसूस कर रही थी कि पहले दिन शाम तक मम्मी जितनी परेशान थीं नानी को ले कर… बाद में उतनी नहीं थी, खैर… । सोचते सोचते पीहू रूम साफ करने में लग गई।
‘दी पापा आ गए… बुला रहे हैं आपको…’
‘विभ सुन न… पापा गुस्से में हैं क्या…?’
विभु ने कोई जवाब नहीं दिया… भोएँ चढ़ा कर कन्धे उचकाए और चला गया।
‘नहीं सुगन्धा तुमने बच्चों को सिर चढ़ा रखा है। किसी भी गलती पर न खुद डाँटती हो न डांटने देती हो। और ये कोई छोटी गलती नहीं थी… पीहू अच्छी खासी बड़ी है….’
‘नवीन सारी गलती बच्चों की भी नहीं है। मैं खुद भी तो कितनी बार माँ की हरकतों से परेशान हो जाती थी . झल्ला जाती थी। बच्चे पिछले दो साल से देख रहे थे ये सब… शायद उन्हें लगा कि वो ये सब करके मेरी परेशानी हल कर रहे हैं।’
पीहू पर्दे की ओट में खड़ी खड़ी सब सुन कर रोए जा रही थी।
‘इधर आओ पीहू… ये क्या हुलिया बना रखा है। जल्दी तुम और विभु तैयार हो कर आओ … हमे कहीं जाना है…।’
कुछ देर बाद कार हवा से बातें करती हुई…. हाइवे पर दौड़ रही थी। हाईवे से उतरते ही एक पुलिस जीप खड़ी थी… पापा ने उतर कर कुछ देर पुलिस अंकल से बात की। और फिर कार को पुलिस जीप के पीछे पीछे चलने लगे।
करीब आधे घण्टे बाद ही वो एक कच्चे मकानों की पुरानी सी बस्ती में पहुंच चुके थे। आसपास काफी सारी गाय भैंस बंधी हुई थीं… एक ओर दो ऊँट और एक हाथी भी बंधा हुआ था।
जैसे ही कार और जीप वहाँ रुकी तो पास ही झुण्ड बना कर खेलते बच्चे और काम करते लोग उनकी ओर भागे।
‘क्या बात है साब जी…. आप यहाँ कैसे… किसी ने कोई कम्पलेंट कर दी क्या?’ हाथ मे फावड़ा लिए एक दाढ़ी वाले आदमी ने पास आ कर पूछा।
‘नहीं…. ये तस्वीर देखो…?’
‘माउशी…. अरे आप माउशी को ढूँढ रहे हैं क्या…?
‘तुम्हे कहाँ से मिली ये… बता … बताता क्यों नहीं…?’
‘हवलदार … ‘ आँख के इशारे से मन करके इंस्पेक्टर ने उसे रोक दिया
‘अरे बल्लू परबतिया सुरजवा जल्दी आओ सब…. देखो माउशी का फोटो… लगता है इनके घरवाले आये हैं…’
कुछ ही पलों में अलग अलग कच्चे घरों में से औरतें आदमी निकल कर बाहर आ गए। पीहू और विभु इतनी भीड़ सी देख कर कुछ असमंजस में पड़ गए थे।
‘माँ कहाँ हैं… बताइए न कहाँ हैं मेरी माँ…’
‘अरे दीदी घबराओ नहीं आपकी माँ हमारे साथ ही रह रहीं है पिछले दुई दिनों से। हम उन्हें बहुत अच्छे से ध्यान से रखे हैं अपने पास…’
‘अरी अलका बताती क्यों नहीं….’
‘हाँ दीदी जी… माताजी को हम बहुत प्यार से रखे हैं बिल्कुल अपनी अंजू मंजू की तरह… अभी आपको लिए चलते हैं उनके पास… आइए … चलिए….’
सब यंत्रवत से उन लोगों के पीछे कजल पड़े। घरों जेवपीछे बहुत सारे पेड़ थे और बीच मे एक बगीचा सा भी था। वहीं एक पेड़ के नीचे चारपाई पर नानी बैठी हुई थीं… और आसपास बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे। एक छोटी लड़की नानी के बाल सुलझाकर छोटी बनाने की कोशिश कर रही थी… और नानी भी बड़े आराम से अपने बाल बनवा रहीं थीं। दूसरी छोटी लड़की उनकी रूखी सूखी हथेलियों पर मेहंदी लगा रही थी। शायद यही अंजू मंजू थीं।
तभी एक छोटा सा बच्चा भागा आया … उसने एक हाथ से अपना निक्कर पकड़ा हुआ था और दूसरे हाथ मे आम था। उसने नानी की गोद मे आम उछाला और तोतली बोली में बोल-
‘दादी आम था लो….’
पीहू को ये देख कर हँसी आ गई…. वो भाग कर नानी के पास पहुँची और नानी से लिपट कर ज़ोर से चिल्लाई-
‘नानीईईईई….’
उसे देख कर विभु भी नानी के पास पहुंच गया।
सुगन्धा और नवीन बस्ती वालों का धन्यवाद कर रहे थे… नवीन ने कुछ पैसे देने भी चाहे पर उन्होंने लेने से मना कर दिया।
बस एक औरत इतना ही बोली-
‘ध्यान रखना दीदी… बिल्कुल छोटी बच्ची सी हैं माउशी … इन्हें अब की बार अकेले न निकलने देना घर से …’
‘पर आप लोगों को माँ मिली कहाँ…?’
‘हम अभी दुई दिन पहले सहर वाले मन्दिर गए थे… ढोल नगाड़ों के साथ। ये जो भोला है न… इसका बियाह है अगली पूर्णमासी को। तो हम सभी देवता पूजने और पंडित जी को न्योता देने गए थे। वहाँ हम सब ने जा कर पूजा अर्चना की … नाच गाना भजन आदि किया। फिर सारे लोगों को मन्दिर में प्रसाद बांटा…’
‘हाँ भैया जी और फेर हम यूँ ही नाचते गाते बजाते … वापिस हो लिए। जब हम आधे रास्ते आ गए और जंगल किनारे सुस्ताने बैठे तब परबतिया की नज़र पड़ी की अरे जे माताजी तो हमारे साथ साथ चली आई…’
‘हम बहुत पूछे भैया की – कौन हो कहाँ जाओगी पर ये तो कुछ न बोलीं। बस हमारे बच्चों का हाथ पकड़ पकड़ कर हमारे ही पीछे पीछे चलीं आईं… और अब दुई दिनों से हमारे ही साथ बहुत खुसी से रह रहीं हैं…’
‘तुमने पुलिस में कंप्लेंट क्यों नहीं कि सूरज…’ इंस्पेक्टर ने हड़काया
‘अरे साहिब हम तो गए थे पुलिस स्टेशन… पर हवलदार साहिब ने हमसे सौ की पत्ती माँगी। हमारे पास यही नहीं तो हम बिना रपट लिखाये ही वापिस आ गए… पूछ लो हवलदार साहिब से…’
इंस्पेक्टर के घूरने पर हवलदार इधरउधर बगलें झाँकने लगा। इतने ही एक औरत शर्बत ले कर आ गयी … सबने शर्बत पिया।
‘पर माता जी मन्दिर पहुंची कैसे….?’
‘वो बच्चे घर पर अकेले थे उस दिन… और कामवाली से घर का दरवाजा खुला रह गया था… तो माँ शायद तभी घर से बाहर निकल गईं …।’
‘माता जी बीमार हैं क्या… बोलती बहुत कम है…’
‘हां… इन्हें भूलने की बीमारी है… अलजाईमर … ये एक लगातार बढ़ने वाला रोग है। जिसमे यादाश्त कमज़ोर होती जाती है।’
‘अरे तभी माताजी ठीक से अपना नाम तक नहीं बता पा रही थीं…’