अश्रुपात्र … A glass of tears भाग- 2 और 3
‘लो तुम्हारे हिस्से का पराँठा… एकदम तेज़ मिर्ची वाला…’
पीहू ने जैसे तैसे बुझे से मन से एक ग्रास मुँह में डाला।
उसे बार बार शालिनी मैम की बात याद आ रही थी
… ऐसा इंसान जिसने अपने सबकुछ खो दिया हो
… जीवन मे दुख ही दुख झेला हो
… वो जानबूझ के किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते
… कोई न कोई मानसिक रोग होता है उन्हें
… उन्हें हमारा स्नेह, साथ चाहिए… तिरस्कार नहीं
पीहू ने कुछ पल को आँखे बंद की… तो उसे लगा की दुःखो के एक पहाड़ से बहते आँसुओ के झरने से … भरा एक अश्रुपात्र लिए हुए सदियों उसकी बूढ़ी नानी उसके प्रेम और सहारे के इंतज़ार में खड़ी उसी की ओर देख रहीं है।
पीहू ने फिर घबरा कर आँखे खोल दीं।
अगली क्लास इतिहास की थी… पीहू होमवर्क न करके लाने वाले बच्चों की लाइन में सज़ा के लिए खड़ी होकर वापिस आई थी।
‘क्या बात है पीहू … तूने आज होमवर्क भी नहीं किया…’
‘कुछ नहीं बस ऐसे ही…’
‘ऐसे ही नहीं सच सच बता … क्या हुआ … तू तो कभी मैम से डांट खाने वाले काम नहीं करती फिर आज हुआ क्या है …?’
‘वो … वो … नानी कहीं चली गईं है शुचि’
‘क्या..? कब..? पीहू, इतनी बड़ी बात तूने मुझे अब तक बताई कैसे नहीं। कब हुआ ये?’
‘वो कल दोपहर … ‘
‘कैसे…’
‘घर का दरवाज़ा खुला रह गया था शुचि…’
‘दरवाज़ा खुला रह गया था या जानबूझ कर खुला छोड़ दिया गया था? तूने या फिर विभु ने कुछ …?’ शुचि ने प्रश्नवाचक नज़रों से पीहू को घूरते हुए अपनी बात अधूरी छोड़ दी
‘मुझे लगा था कि मां को अब आराम हो जाएगा… ‘
‘पागल है तू…? हो गया आराम आंटी को…?’
‘वो तो पहले से भी ज्यादा परेशान हैं कल से…।’ पीहू फफक फफक कर रो पड़ी
‘अच्छा अच्छा… चुप हो जा पहले…’
‘पापा ऑफिस के काम से चार दिन के लिए बाहर हैं। ऐसे में नानी का गुम हो जाना….मम्मी कैसे मैनेज करेंगी सब कुछ…शुचि’
‘सब ठीक हो जाएगा पीहू… मैं अपने पापा से बात करती हूँ घर जा कर … तुम चिंता मत करो…’
पीहू कैसे चिंता न करती… उसकी मम्मी की जान बसती थी नानी में। ठीक वैसे ही जैसे वो पलभर नहीं रह सकती थी अपनी मम्मी के बिना।
हर बार नानी कुछ दिनों को आती थी उनके घर… और उनकी बीमारी और दवाईयों के समय की वजह से सारा घर अस्तव्यस्त हो जाता था। पर महीने दो महीने रह कर वो गाँव वापिस चली जाती थीं।
पर इस बार तो जैसे डेरा ही डालने आयी थीं नानी। दो साल हो गए थे और वो वापिस जा ही नहीं रहीं थीं।
मम्मी के पास पीहू तो क्या विभु के लिये भी समय नहीं था।
मम्मी सारा दिन सिर्फ नानी के कामों में लगी रहती थी… उनकी दवाईयां, उन्हें सुलाना, नहलाना बिल्कुल बच्चों की तरह। उस पर भी नानी कभी भी कहीं भी उठ कर चल देती थी, किसी के भी घर के आगे बैठ जातीं, किसी के घर भी खाना खा लेतीं। सब लोग उन्हें ढूँढते रह जाते और वो कभी मन्दिर कभी सड़क किनारे बैठीं मिलतीं।
कभी कभी तो पीहू को उनकी वजह से शर्मिंदगी भी हो जाती क्योंकि उसकी फ्रेंड्स उन्हें पागल कहने लगीं थीं। फिर मम्मी को उनके कारण नौकरी तक छोड़नी पड़ी थी … तब से तो नानी पीहू के लिए दुश्मन सी हो गईं थीं।
और अभी पिछले हफ्ते तो हद ही हो गई। नानी ने विभु का मुँह ही दबा दिया… उसकी साँस रुकने को हो गई थी। अगर मम्मी न आती समय पर तो न जाने क्या हो जाता।
आज सुबह शालिनी मैम की क्लास से पहले तक तो पीहू को लग रहा था जो हुआ ठीक हुआ। पर अब तो पीहू को नानी की चिंता खाये जा रही थी… मम्मी कल दोपहर से ही नानी की खोज में मारी मारी फिर रहीं थीं।
सुबह भी वो मम्मी को पुलिस अंकल से बात करता हुआ छोड़ कर आई थी… पर अब वो ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि नानी मिल गयीं हों।
विभु और पीहू वैन से उतरे ही थे कि पुलिस अंकल घर से बाहर निकलते हुए दिखाई दिए।
‘इसका मतलब नानी मिल गई… चल विभु…’
अंदर कमरे में पड़ोस की सुम्मी आंटी बैठी हुई मम्मी को ढाँढस बंधा रहीं थीं।
पीहू अपनी टाई गले से उतारते हुए सोफे पर धम्म से गिर पड़ी … कंधे का बैग भी सोफे पर औंधे मुँह पड़ा था।
‘सॉरी मम्मी सॉरी नानीईईईई….’ पीहू का मन रोने का हो रहा था।
‘पीहू बेटा हमें बताओ अपने नानी को आखिरी बार कब देखा था…? सुबह पुलिस अंकल ने पूछा था उससे… तब उसने सफेद झूठ बोल था
‘कल दोपहर को ही अंकल… वो आराम से हमारे साथ बैठी टी वी देख रहीं थी… उसके बाद मुझे नींद आ गई और मैं सो गई। फिर मुझे कुछ नहीं पता…’
पर अब उसका मन हो रहा था… की जो भी पता है मम्मी को साफ साफ बता दे… इस से शायद उनकी कुछ मदद हो जाए।
‘पीहू मैं जा रही हूँ … पुलिस स्टेशन से फोन आया है… दरवाज़ा लॉक कर लो अंदर से। विभु का ध्यान भी रखना और अपना भी।’ मम्मी उसे पुचकारते हुए बोली
‘फिक्र न करो पीहू … नानी जल्दी ही मिल जाएंगी बेटा… मैं आती हूँ…’
पीहू दरवाज़ा लॉक करके अपने और विभु के लिए खाने की प्लेट लगाने लगी।
उसे रह रह कर मैम की बात और नानी का हाथ में अश्रुपात्र लिए हुए खड़ा होने का दृश्य याद आ रहा था।
वो नानी को जानती ही कितना थी। साल में कुछ दिन के लिए उनके यहाँ गाँव जाना या फिर दो चार दिन उनका शहर आना.. बस .. इतना ही तो।
अब वो शिद्दत से चाहती थी अपनी माँ की माँ को … करीब से जानना। शालिनी मैम ने उसे मौका दिया था केस स्टडी करने का… और वो तय कर चुकी थी कि उसकी स्टडी का केस उसकी नानी ही होंगी।
उसने नानी की पासपोर्ट साइज फ़ोटो ढूंढी और अपनी फ़ाइल निकाल कर बैठ गई और ज़रूरी एंट्री भरने में लग गई।
क्रमशः स्वरचित
(पूरी कहानी प्रतिलिपि एप्प पर उपलब्ध)
भाग – 3
‘मम्मी पुलिस स्टेशन से आएँगी तो सब बता दूँगी मैं…’ फ़ाइल पर नानी की फ़ोटो चिपकाते हुए पीहू बुदबुदाई
शाम घिर आयी थी… बाहर ऑटो के रुकने की आवाज़ आते ही पीहू ने डोरबेल बजने का इंतज़ार किए बिना ही दरवाज़ा खोल दिया। पानी का गिलास लिए खड़ी पीहू को मम्मी ने अपने पास बुलाया और हाथ पकड़ कर बिठा लिया। विभु भी मम्मी की गोद मे आ कर बैठ गया।
‘पीहू… एक बात बताओ … कल को जब मैं बूढ़ी हो जाऊँगी। जल्दी जल्दी काम नहीं कर पाऊँगी, ठीक से चल-फिर नहीं पाऊँगी, ज़रूरी चीज़े रख कर भूल जाऊँगी या फिर नानी की तरह मेरी याद्दाश्त कमज़ोर हो जाएगी। तो क्या तुम दोनो मुझे हमेशा की तरह प्यार करना छोड़ दोगे?
मेरा ध्यान नहीं रखोगे … ?
या मेरे घर से चले जाने के लिए दरवाज़ा … यूँ ही खुल छोड़ दोगे?’
पीहू और विभु को मानो… काटो तो खून नहीं। क्या सच मे चोरी पकड़ी गई थी उनकी। मम्मी को पता कैसे चली ये सब…
‘मुझे कैसे पत चला यही सोच रहे हो न…?’
पीहू ने विभु की ओर देखा… तो उसने आँखों के इशारे से इंकार किया की उसने कुछ नहीं बताया माँ को।
‘फिर….’ सोचते सोचते पीहू की रुलाई फूट पड़ी
‘रोना नहीं… बिल्कुल नहीं….’ आवाज़ सख्त थी मम्मी की
‘बात बताओ मुझे…. पीहू … देखो इधर… पूरी बात… ‘
‘मम्मी… कल दोपहर को… जब हम सब टी.वी देख रहे थे न… तो … नानी बाहर दरवाज़े की ओर ही देख रही थीं।’
‘फिर….’
‘तभी कामवाली आंटी बाहर का दरवाजा खोल कर कूड़ा डालने गईं…’
‘फिर…’
‘आंटी वापिस आते समय दरवाज़ा बन्द करना भूल गईं…’
‘और … तुमने … तुमने जानते बूझते भी दरवाज़ा खुला रहने दिया… यही न पीहू…?’
‘सॉरी मम्मी… सो सॉरी…. मुझे नहीं पता था नानी इतनी दूर निकल जाएंगी कि घर वापिस ही नहीं आएंगी…।’
‘मम्मी … मैंने भी दरवाज़ा बन्द नहीं किया… सॉरी मम्मी सॉरी…’ पीहू को रोते देख कर विभु भी रोने लगा
दोनों देख रहे थे मम्मी पत्थर की शिला सी बनी बैठी है…. न तो गुस्सा ही है… और न ही उन्हें माफ कर रही है।
‘सुम्मी आंटी ने बताया मुझे… की तुम दोपहर में दरवाज़े के सामने ही बैठी थी… यकीन नहीं हुआ मुझे… कि तुमने ऐसा कुछ किया पीहू…’
‘चलो अब रोना बन्द करो… सो जाओ दोनो… बहुत देर हो गयी है। कल सुबह मुझे फिर पुलिस स्टेशन जाना है… तुम्हारी छुट्टी है। दोनों अपना होमवर्क पूरा कर लेना।
पीहू देर रात तक फफक फफक कर रोती रही… पर उसकी हिम्मत नहीं हुई कि मम्मी से बात कर सके। पापा का भी फ़ोन आया था मम्मी ने सारी बात बता दी। उन्होंने अपने एक दोस्त से बात करके नानी की खोज में एक स्पेशल टीम लगा दी थी। अब सबको उम्मीद थी कि नानी मिल जाएंगी।
देर रात मम्मी पीहू के कमरे में आईं तो मनोविज्ञान की फ़ाइल देख कर चौंक गईं। उसमे केस स्टडी में केस के आगे नानी की फ़ोटो लगी हुई थी और नीचे पूरा फॉरमेट था
नाम
उम्र
पता
परिवार के सदस्य
समस्या
जीवन के महत्वपूर्ण घटना वृतांत
साक्ष्य
पीहू ने सिर्फ फ़ोटो ही लगाया था अभी और नाम के आगे लिखा हुआ था – चन्दा। उम्र – 70 वर्ष
मम्मी समझ चुकी थीं उन्हें क्या करना है। उन्होंने उसी रात एक ज़रूरी फ़ोन किया… और काफी देर बातें की।
अगले रोज़ सुबह पुलिस स्टेशन के चक्कर लगा कर थकी हारी लौटने के बाद मम्मी ने दो दिन की छुट्टी के लिए होमवर्क के बारे में पूछा
‘मम्मी एक केस स्टडी मिली है… सभी को करनी है। सभी को एक केस चुनना है जिन्होंने जीवन मे बहुत संघर्ष किया हो… दुख झेलें हो… जीवन के उतार चढ़ाव देखें हों। मैने सोच लिया है कि मैं नानी पर ही केस स्टडी करूँगी।’
‘ठीक है…’
‘अभी तो आपके पास समय नहीं होगा… बाद में आप मुझे…’
‘तुम अभी करो अपनी स्टडी पूरी… नानी को तो पुलिस ढूंढ रही है… मुझे तो समय समय पर जाना होगा इधर उधर…बताओ क्या करना है’
‘मम्मी मैंने ‘केस’ का नाम, उम्र और ज़रूरी इंफर्मेशन तो खुद ही नोट कर ली है अब आगे आप बताओ…?’ नानी को ‘केस’ कह तो गयी थी पीहू पर अब मम्मी की ओर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी उसकी
‘पहले मेरे पास बैठो पीहू … हाँ, तो कहाँ से शुरू करें तुम्हारी केस स्टडी के ‘केस’ के बारे में…?’
‘ये जो तुम्हारी केस है ना… जिनका नाम चन्दा है, ये चाँद की तरह ही खूबसूरत, शाँत और शीतल हुआ करतीं थी किसी ज़माने में…।’ मम्मी जैसे कहीं खो सी गयीं थीं
‘पांच बहन भाइयो में सबसे बड़ी…। इनके माँ पिताजी मतलब मेरे नाना और नानी सुबह से शाम खेतों में काम करते और ये सारा दिन अपने छोटे बहन भाइयों को सम्भालने, जंगल से ईंधन के लिए लकड़ियां लाने, गाय का दूध निकालने, गोबर के उपले थापने से लेकर खाना पकाने, बर्तन मांझने, कपड़े धोने तक के सभी काम करते हुए बड़ी हुईं। पढ़ने की इच्छा थी पर गाँव मे लड़कियों को पढ़ने का अधिकार न था…।’ पीहू को लग रहा था वो मम्मी की बातों के साथ साथ एक अलग ही दुनिया मे खींची चली जा रही है। जैसे वो ही चन्दा होती चली जा रही है… जिसकी पढ़ने की इच्छा है पर अधिकार नहीं। जिसे घर गृहस्थी के ढेरों कामो में झोंका जा रहा है।
‘मन की हर इच्छा को मन मे ही दफन करते हुए ब्याह कर दूसरे गाँव पहुँच गयीं। पता है ब्याह के समय उनकी उम्र कितनी रही होगी…?’ मम्मी के पूछने पर पीहू जैसे होश में आई
’18 वर्ष….’
‘नहीं 14 वर्ष… गाँव मे लड़कियों की शादी की यही उम्र होती थी उस समय…’
14 बरस यानी वो उम्र जो वो कब की पार कर चुकी है। जिस उम्र में मम्मी उसे अपने हाथ से थाली परोस कर देती है… और वो नखरे दिख दिखा कर खाती है। लाख मिन्नते तक करवाती है उस उम्र में नानी का ब्याह भी हो चुका था। हैरानी बढ़ती ही जा रही थी पीहू की… उसने तो कभी नानी के बारे में जानने की कोशिश ही नहीं कि थी। मम्मी कई बार बात छेड़तीं थी … पर उसे वो बातें बोरिंग लगती थीं।
क्रमशः
स्वरचित
(पूरी कहानी प्रतिलिपि एप्प पर उपलब्ध)