अश्रुपात्र… A glass of tears भाग – 4
मम्मी देख रहीं थीं कि आज पीहू कितने ध्यान से उनकी सारी बातें सुन रही थी आज। उन्होंने आगे कहना शुरू किया
‘सुंदर इतनी सारे गाँव मे चर्चा का विषय बनी रहें… गोरी इतनी की पाँव भी धोती में से झांक जाएं तो लोगों की निगाह पाँव से न हटे…’
मम्मी के कहने पर भी पीहू को विश्वास नहीं आ रहा था क्योंकि उसने तो हमेशा ही ऊँची नीची साड़ी बाँधे … बिल्कुल साधारण सी बूढ़ी नानी देखीं थीं।
‘नानी सचमुच इतनी सुंदर थीं… ‘
‘हाँ बेटा… सिर्फ सुंदर नहीं बहादुर भी…. जब वो गाँव के बीच से निकलती थीं तो किसी की हिम्मत नहीं कि उन्हें कुछ कह सके या कोई छेड़ सके… क्योंकि सबको पता था कि वो घूँघट में भी कमर में गंडासा बांध कर चलती थीं…।’
‘सच मम्मी… जैसे अब लड़कियाँ पेपर स्प्रे लेकर चलती हैं वैसे ही न…?’
‘हाँ… पीहू…’
‘मम्मी आपका फ़ोन है….’ विभु फोन ले कर खड़ा था
‘ हेलो… जी हाँ… जी… जी .. जी… मैं अभी पहुँचती हूँ….’
मम्मी फिर से एक बार अपना पर्स और मोबाइल ले कर बाहर की ओर दौड़ी।
‘दरवाज़ा बन्द कर लो पीहू…. मैं शाम तक आती हूँ…’
पीहू दरवाज़ा बन्द करके अपनी केस स्टडी फाइनल करने की शुरुआत करने लगी। नानी जितनी सुंदर जितनी बहादुर उसे आज लग रही थीं वैसी तो कभी लगी ही नहीं थीं। पर अभी तो उनके बारे में न जाने कितने छुपे हुए रहस्य जानना बाकी था… क्योंकि अगर वो वैसी थीं जैसा मम्मी ने बताया… तो ऐसी कैसे हुईं जैसा पीहू ने उन्हें देखा था …?
क्या क्या हुआ होगा उनके साथ…?
अश्रुपात्र लिए हुए उसकी नानी क्या जाने कब से यूँ ही खड़ी थीं…?
जाने वो कौन कौन सी घटनाएं हैं जो उस अश्रुपात्र के वजन में वृद्धि करतीं चली गईं…?
‘हे भगवान नानी जल्दी ही मिल जाएं…’ पीहू बुदबुदाई
‘और अब मम्मी आएं तो आगे कि बातें पता चले नानी के बारे में….’ सोचते हुए पीहू टी.वी. देखने बैठ गईं विभु के साथ
शाम घिरने लगी थी… दोनों बच्चों की नज़र मेन गेट पर ही लगी थी… पर मम्मी को चेहरा लटकाए आते देख उनका चेहरा भी लटक गया।
‘क्या हुआ मम्मी…?’
‘कुछ नहीं… वो एक एक्सीडेंट केस था… पर शुक्र है वो नानी नहीं थीं…’
‘चलो कहना खाएं … कल तक पापा भी आ जाएंगे… ‘ मम्मी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा
‘और मुझे पूरा यकीन है कल तक नानी भी आ जाएंगी…’ पीहू ने मम्मी की बात को पूरा करते हुए कहा
पीहू फिर अपनी फ़ाइल के साथ मम्मी के पास आ बैठी थी।
‘मम्मी कल तक का ही समय है… परसों सबमिशन है फ़ाइल का…’
‘हाँ बेटा…’
‘अच्छा मम्मी शादी से पहले तो नानी अपने मन का कुछ नहीं कर पाईं … पढ़ भी नहीं पाईं। पर शादी के बाद तो लाइफ बदल गयी होगी न उनकी… नाना जी तो काफी अमीर थे न ?’
‘हाँ बेटा लाइफ बदली उनकी… जैसे इस पितृसत्तात्मक समाज मे अधिकांश औरतों की बदलती है। सात फेरों के तुरन्त बाद ही एक बेपरवाह शरारती लड़की से सुघड़ सुशील औरत बन जाना पड़ता है उसे। अब घर भर के काम के साथ साथ खेत खलिहानों में काम करने की ज़िम्मेदारी भी आ चुकी थी उन पर।’
‘घर क्या था पूरा कुनबा था… पाँच देवर जेठ और तीन ननदें मिली थीं उन्हें। ज़रा ज़रा सी बातों पर उनके गरीब माता पिता को कोसना तो आम बात थी।’
‘नाना जी…?’
‘वो शहर में नौकरी करते थे… उन्हें जैसा समझाया जाता समझ जाया करते थे… माँ समझ चुकीं थीं आगे आने वाले समय मे परेशानियां बहुत बढ़ने वाली थीं’
‘उफ्फ मम्मी…. नानी ने कितना कुछ सहन किया अपने जीवन मे’
‘अरे ये सब तो हमारे समाज की अस्सी प्रतिशत औरतें सहन करतीं हैं पीहू… इसमें कहाँ कुछ नया है… ‘ मम्मी तंज़ से मुस्कुराईं
‘फिर…?’
‘आगे सुनो… यही कोई बाइस बरस की उम्र रही होगी उनकी… जब मैं और मेरी जुड़वां बहन इस दुनिया में आए। गाँव भर में बातें हुईं… ताने दिए गए माँ को… दो दो लड़कियाँ पैदा कर के रख दी हैं। लड़कियों के ग्रह भी इतने भारी हैं… की चप्पलें घिस जायेंगी हमारे बेटे की इनके लिए घर और वर ढूँढते हुए…’
‘पर माँ इन सब बातों को अनसुना करते हुए हम दोनों की परवरिश में जुट गईं। उन्होंने बड़े जतन से दो नाम चुने बड़ी का सुरभि और मैं छोटी यानी सुगन्धा।’
‘सुरभि और मेरे जन्म के कुछ बरस बाद दो भाई हुए हमारे … पर एक एक बरस बीतते दोनो खत्म हो गए। फिर एक और भाई हुआ… और फिर एक बहन… ‘
‘अजय मामा… सुप्रिया मासी…? ‘
‘हाँ…’
‘तो नानी के दुख का असली कारण उनके दो बेटों की डेथ रही होगी न मम्मी…?’
‘नहीं बेटा….वो दोनों तो जन्म के कुछ समय बाद ही चले गए थे… माँ के दुख की असल वजह उनकी ज़िंदगी से सुरभि का चले जाना था…’ पीहू को लग रहा था मम्मी अभी रो पड़ेंगी
‘ सुरभि… हाँ सुरभि … मुझसे से दस मिनट बड़ी बहन। बिल्कुल माँ की ही परछाईं… रंग रूप बोल चाल, ऑंखें, बाल … सबमें …माँ की जान बसती थी उसमें…’
‘तो क्या वो आपको प्यार नहीं करतीं थी…?’
‘करती थीं बहुत प्यार करतीं थीं… अजय और सुप्रिया तो दस साल बाद हमारे जीवन मे आये थे। पर दस साल तक माँ के पास सिर्फ हम दोनों ही थे।’
‘उन्हें दुनिया की परवाह कभी न थी… उनकी दुनिया तो सिर्फ हम दोनों में बसती थी। सारे घर का काम झटपट निपटा कर बस हमें समय पर खिलाना, सुलाना, कविता कहानियाँ सुनाना उनकी दिनचर्या बन चुकी थी।’
‘खुद उनके बाल चाहे चार चार दिन न सुलझें पर हमारे हेयर स्टाइल … बस क्या कहने। अडोस पड़ोस तक के लोग कहते थे बच्चे पालना तो कोई चन्दा से सीखे…’ माँ की आँखों से आँसू बहते देख पीहू भी अपने आँसू बहने से रोक नहीं पा रही थी।
‘मम्मी अब बाकी बातें कल सुबह करते हैं… कल मॉर्निंग वॉक पर चलें…?’
मम्मी समझ गयी थी… पीहू उसके बहते आँसूओं से घबरा गई है।
‘ठीक है…’ कहते हुए वो दोनों कमरे में इधर उधर पड़ी चीज़े उठा कर सही जगह पर रखने लगीं।
क्रमशः
स्वरचित
(पूरी कहानी प्रतिलिपि एप्प पर उपलब्ध है)